भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नाई बहार / 11 / भिखारी ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भिखारी ठाकुर |अनुवादक= |संग्रह=ना...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:56, 16 मई 2018 के समय का अवतरण

प्रसंग:

अपनी प्रकाशित पुस्तक 'नाई बहार' को मूल्य देकर खरीदने के लिए अपनी जाति के लोगों से अपील।

दोहा

हित अनहित से हाथर जोड़ के, मांगत 'भिखारी' भीख।
राम नाम सुमिरन करऽ तूँहीं गुरु हम सीख॥

चौपाई

चार पाई के कइनी चरचा। लागत पय प्रस में खरचा॥
दाम एही विधि ऊपर होई. मन में दुःख माने मत कोई॥
केहू कही जे ठगलन दाम। बे-पइसा के चले न काम॥
मेहनत मदत लागल पैसा। दाम ना मिली त लागी कइसा॥
लालच हउए दाल के नून। बेसी परे से होई जबून॥
कमती से फींका रह जाई. एही से दाम समानवा भाई॥
भाई जुकुर लिखलीं कम। एही से बेसी करीं का हम॥
ना पाठ पर पढ़लीं भाई, नाम बहुत दूर पहुँचल जाई॥
कहे 'भिखारी' लिखलीं थोर। विद्या से बानी कमजोर॥

दोहा

नाम भिखारी काम भिखारी, रूप भिखारी मोर॥
ठाट-पलान-मकान भिखारी, भइल उहुँ-दिशि शोर॥