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प्रसंग:
नाई जाति को 'हजाम' कहने की सार्थकता का खुलासा।
वार्तिक:
हम कतहूँ-कतहूँ अपना कितनाब में हजाम लिख देले बानी। ओजह हमरा नाई जाति में दू भाई बहुत नामी लोग रहल हा। एक भाई के नाम, हरदेव ठाकुर, दूसर भाई के नाम हरिहर ठाकुर रहल हा। हरदेव ठाकर के समाधी हरदिया का चंवर में बा जिला छपरा, स्टेशन सितलपुर से करीब डेढ़ कोस पूरब-उत्तर का कोना पर 'बाबा हरदेवनाथ' कहा के पूजात बाड़न। दूसरा भाई हरिहर ठाकुर के नाम के 'बाबा हरिहरनाथ' के स्थापना भइल बा साकिन सोनपुर, जहाँ पर हरिहर क्षेत्र पर मेला लागेला। हरदेव ठाकुर हरिहर ठाकुर का नाम का ओजह से एहीजा दू-चार जिला में जादे कर के हजाम लोग कहेला।
कवित्त
धन तेरी महिमा महिमण्डल में मातु गंगा, कहत बिप्र जानत सुजान नर जेते हैं।
धन तप पन्डे प्रचन्डे यमदूतनलों झन्डे गाड़ि, पापिन को पुण्य पथ देते हैं।
धन्य वह नाई सकल तीरथ पर जाई-जाई, देखि के हवन इन्तजाम कर देते हैं।
बालक-जुवान-बूढ़न को ज्ञानि और मुढ़न छूड़न सो मूढ़ पापहुं को मूड़ लेते हैं।
धन्य वह नाई सफाई करत पापन को, धन छुरा छिल-छिल के छन में छूत लेते हैं।
धन्य वह करनि कतरनी नहरनी को, नव मासहूँ के नरक साफ कर देते हैं।
धन्य-धन्य-धन्य हूँ है पावर महावर में, लाल करत पैर के नाखून जवन श्वेत हैं।
कहत 'भिखारी' मेरा नाई भाई धन्य-धन्य, साँच कर मानत जो जानत सचेत हैं।
वार्तिक:
कहुं कहुं पर लिखा हूँ कि मैं सब कर पवनी हूँ मतलब ये कि जो-जो जीव सब कोई इहाँ पाने वाले हैं। जैसे ब्राह्मण अतिथ, महापात्र, भार, भांड़ पंवरिया, इन लोगों ने सब कोई का घर से कुछ-कुछ पाते रहते हैं, मैं नाई वंश कैसा पानेवाले हैं। पौनी हूँ जे अवर जाति को कौन-सा कहने कि बात है। इन छव जाति के यहाँ से कुछ-कुछ पाते रहते हैं, इसलिए पौनी लिखा हूँ।