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"शंका समाधान / 5 / भिखारी ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

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19:11, 16 मई 2018 के समय का अवतरण

वार्तिक

कोई-कोई कहेंगे जे जो जीव शिकायत छपवाते हैं, उन लोगों को कोई नाम भिखारी ठाकुर क्यों नहीं लिखते हैं। तो मैं इस वजह से उन लोगों का नाम नहीं लिखता हूँ। जो वह तो मेरा किसी जनम का नाता है। लेकिन हमारा बरोबर में नहीं है। संसार में जितने जीव उनका नाम आत्मा है। जिस जीव से बहुत जीवों को प्रतिपालन होता हो और बहुत दूर तक नाम हुआ हो वह जीव आत्मा नहीं महात्मा है। तो मैं उनका नाम क्यों लिखेंगे वह तो मेरा ही नाम को किताब बिक्री करके जीते-खाते हैं। जैसे-मेरा नाम पर कितने नाचवाले मेरा चेला कहला करके जीते-खाते हैं। शिकायत छपवाने वालों को नाम बहुत दूर तक होगा। 'तो दस-बीस कोस तक होगा। मेरा नाम पर बहुत लोग जीते-खाते हैं। उन लोगों के लिए मेरा नाम महात्मा तुल्य है। उन लोगों को इस बात मालूम नहीं है, जो नाईबंश में जन्म होने पर नौ मास के नरक नहरनी से हजम कर लिया है। विवाह के समय में गौरी के मंत्र देकर सिख बनाया है। तीर्थ गया में छुरा से मुड़ कर के पाप मूड़ लेते हैं। श्राद्ध में विकरा का पिण्डा चाहे गौ-हत्या में गुरु-गोत्र, पुरोहित, महापात्र देह तक नहीं छुआते हैं। मैं नाई बंश सिख के नख, माथ के बाल वह दाढ़ी से हाथ-पैर का नाखून नहरनी से निज हाथ से समूचा बदन छूकर के सारे शरीर के पाप उतार करके हजम कर लेते हैं। पाचक शक्ति के नाम हजम है। नो मास, विकरा, गौहत्या मुझे मालूम होता है, जो यह तीनो महापाप हैं। यही महापाप को हजम करने से मैं अपने को कहूँ-कहूँ पर' हजाम'लिख दिया हूँ। कहूँ-कहूँ' दास' भी लिखा हूँ। इसका मतलब मैं नाई भाई चौका का रचना करते हैं। चौक चाहे चौका उसी को कहते हैं। जहाँ पर चार बेद, चार धाम को आगमन हो। जजमानों के घर में सत्यनारायण का कथा में चौका का रचना कर के गौरी-गणेश का मूर्ति के स्थापना निज हाथ से करते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश इत्यादि गनेश जी पूजते हैं, क्योंकि गनेश जी प्रथम पूज्य हैं। पारबतीजी का सीता जी स्तुति करके:-

'नहिं तब आदि अन्त अवसाना, अमित प्रभाव बेद नहिं जाना।'

वह दोनों माता-पुत्र को मैं नाई-बंस स्थापना कर सके करने से और कोई तो महादेव जी का दास होते हैं, कोई रामजी को मैं नाईबंश खास कर गौरी-गनेश जी को दास हूँ। उस जगह का टहल करता दास हूँ जहाँ सत्यनारायण स्वामी की कथा होती है। मैं उस जगह का ब्याख्यान विद्वानों के मुख से सुना हूँ, जो कथा होती है। वहाँ पर सर्वतीरथ का आगमन होता है।

श्लोक

तत्रैवे गंगा युमना च तत्र गोदावरी सिन्धु सरस्वती च।
सर्व्वानि तिर्थाति बसित तत्र यत्राऽचुता द्वारा कथा प्रसंगः

जब मैं सब तीर्थों का टहल करता हूँ, तब 'दास' कहलाने में क्या भेद है। कितने मनुष्य एक मूर्ति का टहल करने से दास कहलाते हैं। मैं नाई वंश सर्व तीर्थों का टहल करता हूँ। जब मैं अपने नाटक में बाल-वृद्ध विवाह खेलता हूँ, तो सखी-सहेली लड़की चौका पर बैठने को ले जाती है। उस समय कोई-कोई मनुष्य कह भी देते हैं, जे नाउन लड़की को ले आती है। जब रामजी शिवजी का बिबाह में चौक पर सखी-सहेली बैठाई है।

बैठे शिव विप्रन सिरु नाई, हृदय सुमिर निज प्रभु रघुराई.
बहुरि मुनीसन्ह उमा बोलाई. करी सिंगार सखी लै आई.

रामजी का विवाह चौपाई

छन्द

चलि ल्याय सीतहि सखी सादर सजि सुमंगल भामिनीं,
नव सप्त, साजें सुंदरी सब मत्त कुंजर गामिनी,
कलगान सुनि मुनि ध्यान त्यागहिं काम कोकिल लाजहीं,
मंजरी नूपूर कलित कंकन ताल गति बर बाजहीं॥
रा।च।मा।, बा। 329 / छन्द