"शंका समाधान / 9 / भिखारी ठाकुर" के अवतरणों में अंतर
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वार्तिक:
शिकायत छवाने वाला मुझे मालूम है जे किस जनम के वह लोग सखा हैं अथवा सखी भाव से मुझे कृष्णचन्द्रजी समझ कर के निन्दा करते हैं अथवा मेरा तामसी प्रेम-भक्ति हैं। निन्दा छपवा करके किताब बिक्री के बहाना सांझ-सबेरे मेरा नाम स्मरण करते हैं, जैसे:-
दोहा
भाव सहित शंकर जपे उलिटा जपै मुनि बाल।
कुम्भकर्ण आलस जप ऐष जपे दस भाल॥
क्योंकि गैर-जाति और गैर-पंघति, गैर-पेशा, गैर-जगह के रहने वाले मेरी निन्दा से क्या हानि-लाभ है। मालूम होता है जे इसमें किसी दूसरे जन्म का ...का असर आता है। इस वजह से दिल्लगी शास्त्रार्थ से मुझे अजमाते हैं। जो कोई अपने लड़का के विवाह करने के लिए जाता है, तब लड़की वालों के तरफ से झूठ गाली रेकार होता है। गुरहथी का समय में माई लोग गारी गाती हैं:-
मंगनी के नथिया मड़ौवा झमकौले रे तोरा
बहिन के सोटा मारो, हमार नगर हँसवले रे।