"शंका समाधान / 12 / भिखारी ठाकुर" के अवतरणों में अंतर
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वार्तिक:
सुनो भैया, मुझे निन्दा छपवाते हो तुम्हारे लिय मैं काग भुषुण्डी के-सा हूँ। आप कहेंगे जे काग तो गाय का बदन से खून निकालते हैं। तो मैं माथ-दाढ़ी-नाखून काटते काँट काढ़ते में ब्राह्मण का दाढ़ी, नाखून से खून निकालता हूँ। काग तो भक्षपान करते हैं मैं नवमास के नरक। आप कहेंगे जे नवमास के नरक तो चामार-धोबी लोग साफ करते हैं। आप समझ लीजिये चामार-धोबी पाचक शक्ति नहीं है; क्योंकि उन लोगों का छुआ हुआ जल नहीं चलता हैं। वैसाहि काग को अभक्ष पचाने की सकती नहीं है। इसलिए वह चंडाल कहलाते हैं। मैं नाई नरक हजम करते हैं। आप कहेंगे जे काग भुसंडी तो नीलगिरी पर्वत पर रहते हैं। तो मैं स्टेज पर। वहाँ तो सोना का सिखर है। मेरे पास सोनभद्र है। वहाँ सुन्दर सरोवर है। हमारे यहाँ सरयू जी है। वहाँ मोह-माया नहीं जा सकता है। हमारे यहाँ वैसा ही गंगा जी का महात्म है। वहाँ तो काग भुसन्डी जी बड़का छाया तर कथा कहते हैं। मैं समियाना में। वहाँ तो पक्षियों का समूह श्रोता है। हमारे साथ जीवित सामजी श्रोता होते हैं। वहीं तो पक्षियों का राजा गरुड़ जी कथा श्रवण किया। तो सज्जन मुझे भोजन-रुपया देकर मेरा कर्त्तव्य-भाव देखते सुनते हैं। वही मेरा राजा गरुड़ जी है। तो हंस रूप धारन करके शिवजी कथा श्रवण किया जो सज्जन माला तिलक धारन किये बिचार से रहते हैं नकल तमासा नहीं देखते वह नकल मेरा तमासा में आकर देखते-सुनते हैं, वहीं सज्जनों मेरा शिवजी तो काग भुषन्डी जी अमर हैं। तो कुछ दिन में मेरा नाम भी अमर हो गया। वहाँ रामकथा होती है तो यहाँ, वही अयोध्या रामचन्द्र जी के जयकार होता है। वहाँ बन, वृक्ष हरेक जीव हैं। तो यहाँ साँच झूठ-लबारी बात के बनाई है। कोई-कोई शक्स मेरा बनाया हुआ किताब को बरियारी मुझे राजा युधिष्ठिर समझकर के दबाव करते हैं। मुझे आशा है कि मेरा नाई भाई कृष्णचंद्र हमारे तरफ सहायता करेंगे। जो-जो मनुष्य चोरी से मेरी किताब में इधर-उधर दो-चार चीज मिलाकर अपना नाम देकर के बिक्री करते हैं। वही तो अहिरावन है। मुख्य-मुख्य वीरों का पहरा पड़ते हुए राम-लक्ष्मण को चुराकर ले गया था। वही मेरा बनाया हुआ किताब को राम-लक्ष्मण समझकर के वह लोग चोरा लेते हैं। मुझे भारी भरोसा है जो मेरा भाई महाबीर जी राम-लक्ष्मण किताब को छीन लेंगे, कोई भाई कहेंगे जे भिखारी ठाकुर उन लोगों पर मुकदमा क्यों नहीं करते हैं, तो वह दो-चार मनुष्य नहीं हैं, राजा दुर्योधन-सा बहुत सेना है। मुझे युधिष्ठिर समझकर बेआबरू करने के लिए तैयार हैं। इस वजह से नाई-भाई श्रीकृष्णचन्दर जी आसा कर रहे हैं। जनकपुर सखी लोगों को:-
सवैया
हेरि सखी एक बात सुनो तुम जानहँ इनकी कुंबड़ाई.
कौसिक को मखराखन को रहे, आवत मारग में दोऊ भाई॥
देखि लला की सुन्दरताई तहाँ तिय कामिनी ताड़का आई.
सो करतूति बनी जब ना तब मार दिये तेहि को रिसियाई॥