"शंका समाधान / 14 / भिखारी ठाकुर" के अवतरणों में अंतर
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वार्तिक:
आज कोई-कोई ऐसे हैं, दूसरे के अवगुन को किताब नोटिस छापकर गली-गली बिक्री करते हैं, कवि कहलाने के लिये। मैं सब को प्रणाम इसलिये कर रहा हूँ।
चौपाई
सिया राममय सब जग जानी। करौं प्रनाम जोरि जुगपानी॥
जानि कृपा कर किंकर मोहू। सब मिलि करहु छाड़ि छल छोहू॥
निज बुद्धि बल भरोस मोहिं नाहीं। ताते निवय कउँ सब पाहीं।
रा।च।मा।, बा। 7 / 2
वार्तिक:
सिकायत छपवानेवालों का वर्णन कर रहा हूँ। मैं हद कहते हैं उन लोगों का ज्ञान के हद उनके गुरु जी का जिन्होंने ऐसा ज्ञान दिया जे जिस चीज से आपको भोजन-वस्त्र मिले उसी चीज को आप शिकायत कीजियेगा। ऐसा काम कई एक मनुष्य कर रहे हैं सबको एकहिं दफे हद करके कहता हूँ।
ऊपर का गान में पद है:-
जे कवनो विधि मोरा करेला रटनवा।
आपको कहते हैं जे भिखारी ठाकुर झूठ-भुठ को नाम किया है।