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"शंका समाधान / 16 / भिखारी ठाकुर" के अवतरणों में अंतर
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वार्तिक:
मैं अत्यन्तकर पापी हूँ। पहले लिख दिया हूँ।
' एह पापी के कवन पुण्य से भइल चहुँ-दिशि नाम।
भजन भाव के हाल न जनलीं सब से ठगलीं दाम।
बेरा पार लगा द राम॥'
आठ पहर सन्तावत मोहिके लोभ मोह मद काम।
पाकल केश नाम बिनु काया कंचन भइलन खाम।
बेरा पार लगा द राम॥