"चउथ चन्दा / भिखारी ठाकुर" के अवतरणों में अंतर
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प्रसंग:
बहुत पहिले पाठशाला में प्रथम वर्ग से पाँचवाँ तक चौथा चन्दा, (चउक चंदा) होता था। भादों के शुक्लपक्ष में चतुर्थी तिथि को यह पर्व स्कूल में मनाया जाता था। गणेश की पूजा के बाद 'चउक चंदा' गवाता था। लड़कों के दोनों हाथ में बाड़ी होती थी जिसे बजा कर वे चउक चन्दा गाते थे। स्कूल में गणेश पूजा और चउक चंदा गाने के बाद, सब लड़के मिलकर गाँव भर गाते। हर विद्यार्थी के दरवाजा पर गुरुजी पहुँचते। आँगन में लड़का के आँखें मूँदी जातीं। अँजुरी में मिठाई दी जाती। गुरुजी को दक्षिणा में रुपया और कपड़ा दिया जाता। यह प्रथा अब बंद हो गई. भिखारी ठाकुर जी ने दो चउथा चंदा का गीत लिखें:-
2.
सवैया
मातु-पिता कर धन्य तोंही के जो ऐसे सुपुत्र दीये जनमाई.
गीत-कवित्त अनेक बनाकर, पुस्तक मांहीं दिहब छपवाई.
भारत भीतर अमर नाम लखात सकों नहिं गाई.
तुलसी कलि कर्म गये लिखि के करिके दिखलाये भिखारी नाई.
राम नाम में प्रेम बढ़ै, नित आशीर्वाद हमार सदा ई.
प्रसंग:
सवैया बनाने वाले कवि के विषय में भिखारी ठाकुर द्वारा लिखित:-
पंडित शिव कुमार भट्ट खैराकर बासिन।
शाहाबाद सहार निकट के ब्रह्मभट्ट लिख दीन॥
3.
चौपाई
अति परम रीत पुनीत पावन। भादो चउथ चोर के॥
शशि के बिलोकनवां सजन। छिपी रहत मुख मोर के॥
तेहीं दिवस बालक मातु-पितु। ढीग, ठाढ़ दो करजोर के.
दादा-दादी, चाचा-चाची। लेत दरब अगोर के॥
भउजी बिलकोती आँख मूँदल। मत बोलऽ झकझोर के.
लुगा-झूला-टिकुली-सेन्दूर। सब नेग राखऽ बटोर के॥
बिदेया रतन हित भीख मांगब। त्यागी लाज टिपोर के.
ताली बजावत हाथ थाकल। सुरु भइल बा भोर के॥
मति मन्द छन्द 'भिखारी' । गावत, कवनो तरह जोर के॥
पद कमल में नीत नेहु राखहु। यशोदा नंदकिशोर के॥
चौपाई चौथा चन्दा
जै जै श्री गणेशगण नायक, प्रथम पूज्य विद्या दायक।
शुरू आखिर के सुरुता चाहीं, बरता बाहर भितर माहीं।
राम गति देहु सुमति, से कहवां, गइलन सरस्वती।
चरण कमल मंह गिरत बानी, कतहुं से कसहुं द आनी।
मातु पिता गुरु चरण में निते, प्रेम सहित जीवन भरबीते।
जइसे रामचन्द्र के प्रीति। ओसहिं मन करीह परतीती।
भादो शुक्ल चौथे शुभ बार, आजु भाग भइल बड़ भाग्य हमारा।
श्री गुरु चरण द्वारा पर आके, याचक भइलन बड़ भाग्य हमारा।
बावनजी बनीं गइलन आजू, बलि समुक्ति बालक के काजू।
दरब दौलत देवेके चाहीं, भाई बाबू समुझ मन माही।
आजके गइल बरिसवा दिन, तब ही चरण लवटिहन फीन।
जथा जोग सनभान कीजै, राम नाम रस अमृत पिजै।
चाख अमर फल मानुष पाके पाछे का करब पछता के.
सब उपमा देवहीं के जोगू। सोस्तो श्री लिखत सब लोगू।
गोउ ब्राह्मण के रक्षाकारी, त्रेता अवध मनुज अवतारी।
लिखके नीमन बनल बा रहाता, नाही व रतन जात बा साहाता।
राम ना लिखलन प्रह्लादू, पढ़ रामायण बुझ सबादू।
आद आज तक इहे जनाता, अधम उधारण नाम मनाता।
दिहलन साहेब गरीब नेवाज, हिन्दू कर आजादी राज।
खुदा खूदसर नीरबान, जवन बातवन बेद कुरान।
निरगुण सरगुणा के मत एहु, माता सेवा में राखहु नेहु।
यह तन के जर बाप महतारी, सरवन के फैलल यस भारी।
माई बाप के सेवा करील, रतन अमोल भंडार में भरील।
अन-धन बढ़ी सदा सन्तान, अमरलोक चढ़ी चल विमान।
खात भिखारी सावादत नीके, सीता राम बिनु सब रस फिके.