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"सोनपुर मेला / भिखारी ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

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13:55, 17 मई 2018 के समय का अवतरण

चलऽ हरिहर छत्तर मेला घुमेला, बहुत लोग संगम पर जाइके छपकेला।
आरिये पर नेहइह ना ता गोड़ घसकेला, दया क के साधु लोग आके दर्शन देला॥
छोड़िकर देह पाप तुरते भागेला, हरिहर नाथ दुगो हवन गुरु चाहे चेला।
घर बाटे एके कइसे गुजर चलेला, भितर माहीं ओड़ीयन फुल चमकेला॥
बम बम हर कहीं जल ढरकेला, दर्शन कइला से रस्ता बनेला।
सुनिला जे जरल-मरल कोख पलटेला, हाजीपुर से रिबिलगंज ले धाका ठेलमठेला॥
ओहू में चटाका बा से गेठिये काटेला, केहू लेला-देला, केहू कतहूँ रोवेला।
केहूपान खाईकर हँसेलन झरेला, सुई-डोरा-ऐनक-ककही बिकेला॥
देखे का बहाने केहु जेबी में धरेला, हवा गाड़ी-रेल-हाथी-धोड़ा दउरेला।
कहत 'भिखारी' नाई जीव हदसेला, चलऽ हरिहर-छत्र मेला घुमेला॥

चौपाई

हरिहर नाथ साथ एक घर में, हरदम रहत कसमर में।

वार्तिक:

छपरा जिला में कातिक सुदी पुनवासी के अन्तिम दिन हवन। पुनवासी के दिन पुरुब हाजीपुर में मेला लगेला। पच्छिम सोनपुर लगाइत मानपुर, चिरान, छपरा शहर, गोदना सेमरिया में गौतम जी के अस्यान बा। ओही नगीच में सा: ईनइ मुकड़ेरा गाँव जहावाँ इन्द्र आइल रहस। साकिन-मुकेडे़रा में मुर्गा बोललन तेकर:-

दोहा

इनर, इनरासन के छोड़ी के इनई कइलन बास!
मुर्गा बोललन मुकड़ेरा में, गौतम मुनि के पास॥

वार्तिक:

छपरा जिला मंे साकिम सोनपुर का नगीच में साकिन जहांगीरपुर वह भरपूरा में मालूम होला जे जड़ भरत रिसि रहलन हा।

चौपाई

नग्र जहाँगीरपुर भरपुरा, हरिहर के जड़ भरत हजुरा।

वार्तिक:

छपरा जिला में सा: चिरान में विभान्ड मुनी तप कहली हा।

चौपाई

मुनि विभान्ड तप करत, चिरान सरयुग नहीं रहत बिरान।

वार्तिका:

मुनि विमान्ड के बेटा शृंगीरिसी, जेकर हवन में रामजी के अवतार भइल।

वार्तिक:

छपरा जिला में सा: कुम्हना गाँव जहाँ कुम्हज रिसि रहत रहलन हा।

चौपाई:

मुनि विभान्ड तप करत, चिरान सरयुग नहीं रहल बिरान।

वार्तिका:

मुनि विमान्ड के बेटा शृगीरिसी, जेकर हवन से रामजी के अवतार भइल।

वार्तिक:

छपरा जिला में सा: कुम्हना गाँव जहाँ कुम्हज रिसि रहत रहलन हा।

चौपाई:

कुम्हना कुंभज रिसि के ठाँव। छपरा जिला में बाटे गाँव।

प्रसंग:

सृष्टि विकास-क्रम में जिस प्रकार नौ अवतारों का वर्णन है, वैसे ही मानव-विकास की भी नौ अवस्थाएँ या चरण हैं।



नर नव औतार से

चौपाई:

मछ, कछ ब्राह तीन औतार। श्री नरसिंहजी खम्भा फार॥
बावन, परशुराम होई गइलन। राम, कृष्ण, तन बउध धइलन॥
धरती-पानी-अग्नि-आकाशा। पवन भवन में करत तमाशा॥
अन-सकरकन-मेवा-दूध। खटरस-तींत-रस मीठरस शुद्ध॥
भोजन से पैदा रज-विज होता। जीव के करता करत अलोता॥
हाड़ मांस पर चमड़ा बार। सहजे कइ दिहलन सरकार॥
आँख-कान-नाक-जीभ-मुख जेते। दिशा पेशाब के राह समेते।
हाथ-गोड़-नोह-पेट-कपार। कइसन सोभत बा दरबार॥
अँगुरी-केहुना-ठेहुना लचकत। सुख में हँसत दुख में कचकत॥
बइठब-उठब-चलब-सुतब। कहब-सुनब-भितर गुतब॥
नाम परल धउरल मकउड़िया। बबुआ मरीहन छानल कउड़िया॥
पढ़ब-चढ़ब-उतरब नीचे। एहीजे लागब केहूके खींचे॥
राम समाजी समाज में कहीहऽ। कलह-रोग से डरते रहीहऽ॥
कहत 'भिखारी' राम रस पिअऽ। वाल्मीकी-तुलसी अस जीअऽ॥

वार्तिक:

ऊपर हमनी का ईश्वर के कहीला। नारायण हमनी का नर हईजा। नारायण नव अवतार:-

1. मछ, 2. कछ, 3. ब्राह, 4. नरसिंह, 5. बावन, 6. परशुराम, 7. राम, 8. कृष्ण, 9. वउच।

हमनियों के नव औतार हईजा। मछ के औतार पानी से होखेला। हमनियो के औतार पानी से ह। रज बीज पानिये हवन। मछ लोग लम्बा होला। हमनी के सर्जन पेट में लम्बा बनेला। मछ का गोड़ ना होखे। हमनी के हाथ-गोड़ तैयार हो जाला, तब मालुम होखेला जे कछ औतार हो गइला। जीव पर जाला, तब मालुम होखेला ब्राह औतार हो गइल। ब्राह का गजब जसे प्रेम है। पेट में गजबज रहेला। जब हमनी के नव महिना के हो जाइला से त मालूम होला जे नरसिंह औतार हो गइल। नरसिंह भगवान खम्भा फार के निकललन। नर मतारी के पेट के खम्भा फार के निकललन। बाहर अइला पर बच्चा कहावलन। 'बा' के मतलब मालुम होता जे बावन औतार हो गइल। 'चा' के मतलब चाहना हो गइल कवनो चीज मुँह में डाल देत वारन आखिर उनका खाए के नइखे। जब डेगा-डेगी चले लागलन, तब परशुराम औतार होके ठीठ हो गइलन। मतारी के झोंटा नोचत बाड़न, मारत बाड़न। जेकरा गोदी में बाड़न सेकरा के लाते-मुका से मारत बाड़न। जब तनी सेयान हो गइलन, तब रामजी के औतार हो गइलन। तब जीत-हार के मन हो गइल। कुस्ती, चीका, कबड्डी, तास में। जब विवाह हो गइल, तब कृष्ण भगवान हो गइलन। रासलीला में खुश वाड़न। जब बूढ़ हो गइलन, तब बउध औतार हो गइलन। ऊपर में अइसन चौपाई बा:

कहत भिखारी राम रस पिअऽ। बाल्मीकि-तुलसी अस जीअऽ॥

मतलब:

आज काल मालुम होला जे अरदोआय सौ-सवा-सौ-वर्ष बाड़न जकर मन दो-चार-सौ हजार वर्ष जिये के होखे, से रामरस पिअस। बल्मीकि, तुलसीदास, प्रहलाद जी जे मालुम होता जे राम रस से अभी तक जिअत बाड़न। हमनी का रामायण में चौपाई पढ़ीला-

छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित यह अधम सरीरा॥
-रा।च।मा।कि। 10 / 4

ई पाँच चीज ने बाड़न एह देह में बाड़न, लेकर स्थान छितिज। धरती पर जे चीज बोअल जाला, जामेला कातना बिआ सर जाला। रोकावट के जगहा धरती ओसहीं एह देह में धरती के स्थान पेट। भोजन कइला से फैदा होला। कवनों चीज भोजन कइला से हरजा कर देला। जल के स्थान मुँह। बोलत समय जल मालूम ना होखे। भोजन का समय कवर-कवर में जल ढ़ीला बना देलन, तब घोंटाला। एह से मालूम होला जल के स्थान मुँह। अग्नि के स्थान आँख। कान में छेद बा। लउके ना। एह से मालूम होला जे अग्नि के तेजी से लउकेला। आकाश के स्थान कान। आकाश के हमनी का शून्य कहीला। कतहूँ से शब्द आवेला, तब आँख-नाक से ना सुनाय। कान से सुनाला। आकाश के हमनी का शून्य कहीला। कतहूँ से शब्द आवेला, तब आँख-नाक से ना सुनाय। कान से सुनाता। पवन के स्थान नाक ह। अन्त समय नाक तर हाथ लोग ले जाला। कहेला लोग जे सर नइखे चलत। बाबा नइखन। हमनीका का कहीला-

चौपाई

घर धरती के एके लेखा। जस भितर तस बाहर देखा॥

बाहर धरती से भोजनवाला चीज तैयार होखेला जल का बल से। खाली जल से पनीआरी मार दी। अग्नि के जगहा पर सुरज नारायण के तेजी. ओदा सूखा दोनो चीज से जजात पार लागेला। अन्न होखेला अकाश का बल से। छावनी कके खेत बोवला पर छहींरा मार देला। एह से मालुम होला जे आकाश का बल से अन्न पैदा होला। यदि घेर दिखाए हवा भी ना लागे, तब भी जजात पार ना लागी। एह से मालुम होला जे पवन से अन्न भी पैदा होला। भोजन का चींज एह पाँचो जना के बल से तैयार होखेला। भोजन कइला से रज विज पैदा होखेला। एह पाँच का बल से जलचर, थलचर, नभचर शक्ति वाला हमनी का कहा रहल बानी। जवन चौपाई ऊपर लिखाइला बा-

पवन भवन में करत तमाशा।

ई पाँच जना 'भवन' नाम देह में, भितरी-बाहर 'भव' नाम संसार में तमाशा करत बाड़न।
8.

वार्तिका: छपरा (वर्तमान सारण) जिला में गोदना सेमरियाँ, जहाँ मेला लागेला, गौतम ऋषि के स्थान बा।

चौपाई

महाबीर के अंजनी मइया। छपरा जिला के रहवइया॥
गोदना गौतम मुनि रहीला। उनही के नारी हई अहीला॥
जेकर बेदी अंजनी नाम। तेकर बेटा महा बलधाम॥
सूरज देव के भक्षन कइलन। तिनो लोक अन्हार हो गइलन॥
जव ना समय में रहन लरिके. ओही धरी से लगलन परीके॥
महाबीर बजरंग बली। चर्चा चलत बा गली-गली॥
संग में केहू ना सागर-पार। जाई के दिहलन लंका जार॥
चिन्ता-रहित होई गइली सीता। जब मिललन महाबीर पुनिता॥
कबहूँ के परिचय रहे ना खास। अंगूठी से कइली विस्वास॥
राम-लखन दुनो भाई के. देवे के बल काली माई के॥
अहिरावन पताल लेई गइलन। तहाँ से महाबीर लेई अइलन॥
कालनेमी केदिहलन मार। अगसर केहू ना रहे गोहरा॥
आज होखत बा 'वाह-वाह' वाह। एक पईसा नइखे तनखाह॥
राम नाम हृदय में धरी के. कइलन से अब दोसर करीके॥
करीहन ऊहे जे भजीहन राम। जेकरा नइखे अवर से काम॥
दाया सत सान्ती सन्तोष। राम नाम के कर भरोसा॥
ई दौलत चाहीं हरमेशू। कहत 'भिखारी' देश परदेशू।

दोहा

मुरी पिया के लखण जिया के लिहलन जग में जस।
राम नाम बिनु कहत 'भिखारी' कतहूँ नइखे लस॥

दोहा

मुँह-हाथ-पेट-गोड़ के मेल मिलावल ढंग।
कहत 'भिखारी' देखी के मन करहु सतसंग॥

दोहा

असहूँ असहूँ तमसहूँ गढ़तहूँ गदसहूँ राम।
कहत 'भिखारी' रसहूँ अरसहूँ जसहूँ अजसहूँ तमाम॥
सुनत गुनत चुनत विधुनत राम नाम कहऽ जीव।
कहत 'भिखारी' मन मंदिर में ई धन जोगवत शिव॥
खवत गावत पान चबावत साज बजावत राम।
कहत 'भिखारी' एही नाम से बनी जइहन सब काम॥

प्रसंग:

बलिया जिला और परशुराम के भृगु-आसरम का महिमा-के कथन।

चौपाई

बलिया बरीआरी से नाम। मालुम होखत बा कहत तमाम॥
भृगुकुल में लेके औतार। क्षत्रीवंश के दिहलन मार॥
से भृगुआसरम बलिया जिला-परशुराम के कथा सुनिला॥

प्रसंग:

आरा जिला से सम्बंधित स्थान के वर्णन।

गौद्विज संत मातुदेव कारण। आरा आरण सागर पारण॥
आरा आर पार गढ़ लंका। राम वाण से संत निशंका॥

वार्तिक:

नदी में दूगो पार होखेला। ई पार आरा, ऊ पार लंका रामजी का मार से मारीच लंका से चल गइलन।

चौपाई

बिनुफर बान राम तेहिमारा। सतजोजन गा सागर पारा।
रा।व।मा।बल। 209-4

तब रिषी निज नथहि जिय चीन्हा। विद्यानिधि कहूँ विद्या दीन्हा।
रा।व।मा।बाल। 208-7

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आरा जिला मसाढ़ भवानी। बानासुर केह राजधानी॥
सहसराम ह आरा जिला। पर्वत में रोहितास के किला॥
पहिला युद्ध बक्सर में भयऊ। से उछाड़ लंका चली गयऊ॥
जिला छपरा छप्पर-बंध। नगीचा सोभत बा सम्बंध।
गोदना सोनपुर के सिलसिला। कहत 'भिखारी' कहल कहीला।
महोदव सोनपुर के वासी. अंजनी से महाबीर प्रकाशी॥
दया सत्त शांति सन्तोष सहित राम के नाम।
कहत 'भिखारी' पाँच पंच से बनी जइहन सब काम॥

वार्तिक:

कवनो चीज धरे के वास्ते राखल जालें, तइसे रामजी के नाम जोगा के रखे खातिर मालुम होखेला जो दया-सत्य-शान्ति-सन्तोष वर्तन हउअन।

चौपाई

शृंगी ऋषि हि वशिष्ठ बोलावा। पुत्र लागी शुभ जग्य करावा॥
रा।च।मा।बल। 188-5

वार्तिक:

कहाँ से बुलाया। शृंगीहरिया से।

चौपाई

शृंगी ऋषि रहत शृंगीहरिया। तवने जगहा हटे सेमरिया॥

दोहा

श्रीगणेश जै, श्रीगणेश जै, श्रीगणेश कहऽ जीव।
जेकर माता आदि भवानी, पिता दयालु शिव॥
हरिहर लक्ष्मी पारबती, सहित बिराजत चार।
एक मन्दिर में कहत भिखारी झमरत बा दरबार॥

वार्तिका:

राम शब्द लिखे में तीन अच्छर होखत बाड़न। रकार, अकार, मकार, रजोगुण ब्रह्मा, आकार सतोगुण बिसुन, मकार तमोगुन महादेव जी. आकार सतोगुण हरिरूप हवन। बिसुन भगवान हवन, जेह सतो गुन के हमनी का कहिला राम नाम सत है'। वोही सतोगुन के बंगाली लोग' हरि बोल' कहेला।

चौपाई

बिसुन हरि राम सत एक। कहत 'भिखारी' भाव अनेक॥

चौपाई

हरी के बस्ती नइखे दर। जिला छपरा में सोनपुर॥
तेकर नाता नगीचे बाटे कहब त लागी सगरो पाटे
कहला बिनु रहल ना जाता। सुनीलऽ भइया आपन जमाता॥
ई वार्त्ता कतहूँ मत कहिहऽ। सुनके-गुनके मन में रहीहऽ॥
नइखीं पाठ पर बढ़ल भाई. गलती बहुत लउकते जाई॥
शिलनिधि राजा सिलहौरी घर। विश्वमोहनी सुता जेकर॥
तेकर बिबाह बिस्तु से भउवे। छपरा के बात फैलते गउवे॥
जात-जमात-बरात ना गइल। माला लगा के सादी भइल॥
दुल्हा-दुलहिनी दिलहन चलऽ। तुरते मच गइल खलबल।
नारद जी के मोह होई गउवे। रामलीला के रचना भउवे॥
हर के घर हउवे कसमर। गंगा-गंडक संगम पर।

दोहा

सादी भउए दच्छ घर सती से पहिला बार।
सीता राम का कारने, होई गइली जरि छार॥
निकलल रतन समुद्र से फैलल अवगुन गुन।
ओसहीं सोनपुर मेला में लउकल निमन-जबून॥

वार्तिक:

मालूम होखेला जे समुद्र से चौदह रतन निकलल ह। समुद्र में श्री एक मेला में लक्ष्मी बिसुन भगवान का साथ में। समुद्र में मनी दु मेला में बिसुन भगवान। मनु जी महाराज भगवान से कहले बानी से चौपाई-

मनि बिनु फनी, जिमि जल बिनु मीना। मम जीवन तिमि तुमहिं अधीना॥

वार्तिक:

समुद्र से रम्भा तीन मेला में अप्सरा बारूनी चारा मेला में नासा। समुद्र से अमृत पांच-मेला में। श्री गंगा जी. शंख, छवः हरिहरनाथ का मंदिर में पूजा का समय पर शंख बजवलन। गजराज सात समुद्र से हाथी। मेला में 3 हाथी जेकरा ग्राह धइले रहन। समुद्र से कल्प बृक्ष आठ। मेला में महादेवाजी. समुद्र से चन्द्रमा, नव। मेला के अन्तिम दिन पुणवासी के हवन। पूर्ण कला से चन्द्रमा उदय होखेलन। समुद्र से काम धेनु, दस। मेला में संत-दर्शन। समुद्र से विष, एगारह। मेला में बहुत किसम के जहर निकलन। समुद्र से धनुष बारह। मेला का नगीच में मालुम होला जे दहिआंव में राजा दधिचि रहत रहलन हा, जेकरा हाड़ के धनुष बनल हा, जे धनुष देखे खातिर सब देस के वीर लोग जनकपुर आइल रहन।

दोहा

छपरा शहर दहिआंवा में, रहत दधिची बीर।
तेकर हाड़ धनुष होई गइलन, भइल जनकपुर भीर॥

वार्तिक:

समुद्र से धन्वतरी तेरह। मेला में चउरस्ता पर बिना दाम के दवाई लेके तैयार रहेला लोग। समुद्र से घोड़ा चौदह। मेला का नगीचा में बाः चिरान में मोरध्वज किहाँ एक साधु बाबा कहलन जे हमारा बाघ तोहार बेटा के मांस खइहन दहिना बगल के. दोनों बेकत सरधा से चीरबऽ तब। राजा मोरध्वज कबूल कइले रहलन।

1.

चौपाई

आरा वार्तिक साकिन हुमरी के चौपाई.
आरा जिला भोजपुर का जरी। गंगा धार से नगीचा परी॥
धर्म धरीछना कुँअर कड़ली। डुमरी में कवलेज क गइली॥
पहिला कीर्ति हाई स्कूल। हुलसत बा जवार बिलकुल॥
कतिना बबुआ हाकिम होइहन। केहू विद्या के बिआ बोइहन॥
कुतुबपुर के नाई अइलन। चौपाइ के रचना कइलन॥
बीस दूई एकसठ बा आज। रोज सोमार ह हे महराज॥
कतह 'भिखारी' पसरी लतर। जर बा डुमरी जानी जगतर॥