"भिखारी ठाकुर / परिचय" के अवतरणों में अंतर
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शुभ सम्वत् 1144 शाके 1801 तदनुसार 1265 फसलो तथा सन् 1887 ई. पौस मास शुक्लपंचमी सोमार को 12 बजे दिन में मेरा जन्म हुआ। आठ वर्ष की उमर नहोशी में बीता। नव वर्ष से जीवन चरित आरम्भ कर रहा हूँ। जब में एकावन वर्ष का हुआ, तब जीवन चरित का रचना किया, अब प्रेस में छपवाता हूँ।
दोहा
शुक्रवार शुभ लगन घड़ी, शुभ तारीख हुई पाँच।
उनइस सौ एकतालीस को दिया प्रेस में सांच॥
जब मैं नव नर्ष का हुआ, तब विद्या पढ़ने के लिए पाठशाला पर गया। एक वर्ष तक राम गति लिखने नहीं आया, तब पढ़ना छोड़ दिया। मुझको चार गायें और उनके बच्चे थे। उनको चराने के लिए प्रतिदिन खेतों में ले जाया करता था। उसके बाद अपना पेशा हजामत बनाने को सीख लिया, तब विद्या पढ़ने की लालसा हुई. एक बनिये का लड़का, जिसका नाम भगवान था, उन्हीं से हमने कहा कि हमको पढ़ा दीजिए. तब उन्होंने हमको पढ़ दिया। थोड़े ही समय में लिखने-पढ़ने की समझ आ गई. रामायण की कथा में हमरा मन बहुत लगता था। उसके बाद मेरी इच्छा हुई कि कमाने के लिए परदेश जायें। तब मैं घर से भागकर खड़गपुर चला आया। वहीं हजामत बनाने लगा। वहाँ रात में रोज-रोज रामलीला होती थी और मैं भी देखने के लिये जाया करता था। जी-कहता था कि मैं भी इसी तरह तमासा करूँ। अषाढ़ महीना में रथ यात्रा में लोगों के साथ में मैं जगन्नाथपुरी चला गया। चन्दन तलाब में स्नान करके मैंने श्रीठाकुरजी का दर्शन किया। तब मैं समुद्र की लहर लेकर अकेले ही डेरे पर चला आया और सब साथियों से संगत छूट गया। तब मैंने डेरा पर आकर साथी की गठरी खोली, तो उसमें रामायण थी। उसी को पढ़ने लगा, तब मुझको कुछ समझ में आने लगा। तब मेरा मन तुलसी-कृत रामायण में लग गया। ठाकुर द्वारा से खड़गपुर आकर कुछ दिन रहकर तब घर पर चला आया। साधु, पंडित या जिसके मुँह से गीत, कवित्त, छन्द श्लोक अच्छा लगे अर्थ पूछकर सीखने लगा और अपने अक्षर में लिखने लगा। उस समय हमारा बिबाह हो गया था। रामलीला में ब्याजस जी उपदेश देते थे। सुनकर मेरा मन हुआ कि इसी तरह से मैं भी उपदेश देता। अपने साथियों से सलाह करके कागज के क्रीट मुकुट बनाकर गाँव में रामलीला करना शुरू कर दिया। साथ-ही-साथ में सरधापूर्वक उपदेश देने लगे। उस समय मेरी उमर तीस बरस की थी। तब नाच का गिरोह बनाकर सट्टा लिखाकर मैं कुछ दाम कमाने लगा। मेरे माता-पिता मना करते थे कि तुम नाच में मत रहो। चिट्ठी न्योतने के बहाने नाच में चला जाता था। सट्टा मेरे द्वार पर नहीं लिखा जाता था। साथियों के यहाँ सट्टा लिखा जाता था। इस वजह से मेरा छल मेरे माता-पिता को मालूम न होता था। 'राम-कृष्ण की जय' बोलकर दोहा-चौपाई कहके उपदेश देने लगा।
नाचने-गाने और बजाने का हाल में कुछ नहीं जानता हूँ। सिर्फ़ भोजपुरी बोली में मैं उपदेश यथाशक्ति देता हूँ। 'राम-कृष्ण' शब्द की कृपा से मेरा नाम फैल गया। मेरा गुरु-मंत्र भगवतीजी का है। मेरी जन्म-भूमि कुतुबपुर है। पहिले मेरा गाँव आरा जिले में था। मेरे ममहर, फुफहर, ससुराल, स्वजाति के राजा, दीवान, पुरोहित, गुरु, पोस्ट, थाना ये सब, आरा जिले में थे। गंगा जी से ढ़हकर मेरा गाँव दियारे में चला आया। तब से छपरा जिले में कहाने लगे। 1294 (फसली) का भादों में मेरा बस्ती दहकर दियरा में चला आया है।
दोहा
बारह सौ पंचानवे जहिया, सुदी पूस पंचिमी रहे तहिया।
रोज सोमार ठीक दुपहरिया। जन्म भइल ओही घरिया॥
चौपाई
बारह सौ पंचानबे साल कहावल जब। कुतुपुर के कहत 'भिखारी' जन्म हमार ह तब।
पुष महिना शुक्ल पक्ष में पंचमी रोज सोमार। कहत 'भिखारी' बहार बजे दिन में जनम हमार।
तेरह सौ सनतावन साल ह आज ह मंगल दिन। पंचमी कृष्ण आसाढ़ भइल मोर बासठ वर्ष के सीन।
दोहा
गौरीसुत मंगलकरन, हरन विघ्न सुख मूल।
बन्दौ मैं नित पद कमल, करहू माफ सब भूल॥
चौपाई
जै श्री गुरु जै पुरोति ज्ञानी। चरन कमल मँह गिरत बानी॥
गो द्विज संत सभा पद परिके. लिखत बानी हालत कछु जोरी के॥
लिखे-पढ़े के हाल ना जानी। राखऽ पत शारदा भवानी॥
राम लषण सिया सूर्य चनरमा। ना हम जानी कुछ सत करमा॥
पण्डित कवि खल हित अनहिते। मोर प्रणाम चरण मँहँ निते॥
लग्न महुरत ग्रह तिथि बारा। भुलल माफ कर पवनकुमारा॥
ओझा डाइन देवता भूता। करहु माफ जादू यमदूता॥
मृत्यु अकाल होने नहिं पावे। यम के दूत निकट नहिं आवे॥
कवनो कष्ट न ब्यापे कबहूँ। आज से अन्त मृतक हो तबहूँ॥
पानी पवन अग्नि जलथलहुँ। श्री गणेश अक्षर कर भलहूँ॥
जीवन चरित्र होता बा वर्णना। शेष नारायण राखहु शरणा।
जन्म जन्म श्री रामे रामा। कसहूँ रटब 'भिखारी' हजामा॥
आरत होइ कहत कर जोरी। सुनहु रमापति विनती मोरी॥
वर्ष एकावन के हम भइलीं। तीरथ ब्रत-सतसंग ना कइलीं॥
सब को प्रणाम नित सौ बारी। जात-गुसइया करहु उधारी॥
मातु-पिता के पद सिर नाई. लिखनी शुरु होखत बा भाई॥
नौ बरस के जब हम भइली। बिद्या पढ़न पाट पर गली॥
वर्ष एक तक जबदल मति। लिखे ना आइल रामगति॥
मन में विद्या तनिक न भावत। कुछ दिन फिरलीं गाइ चरावत॥
गइया चार रहीं घर माहीं। तेहि के नित चरावन जाहीं॥
जब कुछ लगलीं माथ कमावे। तब लागल विद्या मन भावे।
माथ कमाई नेवतीं चिट्ठी। विद्या में लागल रहे दिठी॥
बनिया गुरु नाम भगवाना। ऊहे ककहरा साथ पढ़ाना॥
अल्पकाल में लिखे लगलीं। तेकरा बाद खड़गपुर भगलीं॥
ललसारहे जे बहरा जाई. छुरा चालकर दाम कमाई॥
गइलीं मेदनीपुर के जिला। ओहीजे कुछ देखलीं रामलीला॥
ठाकुर द्वारा वहाँ से गइलीं। चनन तलाब समुद्र नहइलीं॥
दर्शन करि डेरा पर आई. खोलि पोथि देखलीं चौपाई॥
फुलवारी के जगह बुझाइल। तुलसी कृत में मन लपटाइल॥
दोहा
तुलसी चउता भुवनेश्वर फिरती साखी-गोपाल॥
कहे 'भिखारी' लागल रहे रथयात्रा ओह साल॥
भुनेश्वर में तुलसी चउतरा बा। राधा-कृष्ण के मूर्त्ती अलग बा॥
चौपाई
घर पर आके लगलीं रहे। गीत-कवित्त कतहूँ केहू कहे॥
अर्थ पूछि-पूछि के सीखीं। दोहा छन्द निज अक्षर लिखीं॥
सादी-गवना रहुए भइल। लिखे में पहिले भोर पर गइल॥
साधु-पंडित के डिग जाहीं। सुनि श्लोक घोखी मन माहीं॥
निजपुर में करिके रामलीला। नाच के तब बन्हलीं सिलसिला॥
तीस बरस के उमिर भइल। बेधलस खूब कलिकाल के मइल॥
नाच मण्डली के धरि साथ। लेक्चर दिहीं जय कहिं रघुनाथ॥
बरजत रहलन बाप-महतारी। नापच में तूँ मत रह भिखारी॥
चुपे भाग के नाच में जाई. बात बनाके दाम कमाई॥
केहू सराहे, केहू दूसे। केहू जमावऽ कहे अबहूँ से॥
तनिको गावे न आवे बजाये। काहे दो लागल लोग का भावे॥
राम शब्द जय कहि के. सभा खुस करीं नाच में रहिके॥
केवल राम नाम कहि शानी। दुसर इष्ट मोर आदि भवानी॥
राम प्रताप भइल यश नामा। कहत 'भिखारीदास' हजामा॥
वार्तिक:
हम राम गली से य र ल व तक पढ़लीं।
चौपाई
राम गती य र ल व, अतने पठ़के कइलीं हव।
दोहा
एक-दुई-तीन-चार ककहरा, ना पाठ पढ़लीं पहाड़ा।
गावे के ना जनलीं हाल; ढोलक ना जोड़ी बजवलीं झाल।
धन परिजन के मिलल ना बल, दोहा-चौपाई झलकल।
झूठहूँ राम नाम कहला से, भोजपुरी भाषा गहला से।
असहीं नाम फयेलेते जाता, रेडियो से काशी-कलकत्ता।
उमर बरिस भइल एकहत्तर, भादो के बाद से चललऽ बहत्तर।
बिना गाछ के लागल, फल, घटा ना लउकल बरिसल जल।
जैसे बिना फौज के जीत, नजर परते बालू के भीत।
ओसहीं करनी बाटे मोर, मातृभाषा के ह ई निचोर।
बरिस दिन के बबुआ भइलन, कइसे चउकी पर चढ़ी गइलन।
इहे तमासा अचरज बाटे, चतुर कहइलन निपटे चपाटे।
छपरा-पटना-बलिया-आरा, चौमुख पर बा घर हमारा।
से बिहार में बिचरत चोला, बिना पुरजा के उड़ल खटोला।
कहत 'भिखारी' कुतुपुर ग्रामा, बोले ना आवत जोड़त ड्रामा।
गीत
छूरा छूटल नाच का जर से॥टेक॥
माथ कमाई दींहि बोलहटा छूटे ना कइंची कर से।
खायक मजूरी मांगे का बेरिया, झगरा होत नारि-नर से॥ छूरा॥
जहाँ रेल के सुबहित रास्ता भारा ना मांगी डर से।
ग्रीष्म में चिट्ठी नेवतीं गिरे पसीना गतर से॥ छूरा॥
तीस बरस के भइल उमर, तब रात-दिन जीव तरसे।
कहीं से गीत कबित्त कहीं से, लागल अपने बरसे॥ छूरा॥
जन्म साल मोर नबे पाँच के विनय करीं हरिहर से।
कहेऽ 'भिखारी' पार उतारऽ मोंहि के भवसागर से॥ छूरा॥
(ख) भिखारी ठाकुर के पूर्वज
चौपाई
पुराखा पद के ककरू प्रनाम। लिखत बानी श्रेष्ठ के नाम॥
जवना बंस में जनम भइल। लेकर हईं कितनी कइल॥
श्री गुमान सूत रमई नाई. ता सूत दलसिंगार कहलाई॥
ताके सुत भिखारी मोर नामा। कुतुपुर में करत मोकामा॥
तेकर भइलन सिलानाथ। जातिक सभा में नाव माथ॥
एह छंछेप कहा मैं गाई. देखहूँ राधेश्याम मँह जाई॥
दोहा
' राधेश्याम बहार में, पूरा छपल बा नाम॥
कुतुपुर से जहावॉ जाके, कइलन वंश मोकाम॥
(ग) भिखारी ठाकुर की जन्म-भूमि
वार्तिक:
बहुत दिन पहले की बात है, मैं अपना पूर्वजों का स्थान का पता शुरू से आज तक लिखाता हूँ। आरा जिला में डुमरांव स्टेशन से करीब-करीब नव-दस कोस साकिन अरथू अवारी से दक्षिण तरफ एक बस्ती है। साकिन अरथू से क्षत्री, यादव, नाई, गोड़ दूसाध पाँच जातियाँ साकिन कुतुपुर महाल शंकरपुर परगाना बारह गाँवाँ जिला आरा में रहकर खेती-गृहस्थी करने लगे। पहले महाल मालिकान था, अब हुत दिनों से सरकारी हो गया। जब मालिकान था तब से आज तक पाँचों पटिदार के खेती-गृहस्थी में पट्टीदारी चला आता है। आज तक पाँचों पट्टीदार के खानदान मौजूद हैं, पाँचों पट्टीदार में आज तक पट्टीदार वास्ते हिला-हुजत नहीं हुआ।
हउवे खास हमार समाचारी, नगर में इमरत बा पटीदारी।
पहिले बास रहल भोजपुर में, मौजे अरथू अवारी।
पुरखा पाँच बसलन शंकरपुर जानत बा सब नर-नारी॥ नगर।
क्षत्री, यादव, नाई, गोड़, कुल सनमत रहुये भारी।
एक दुसाध चार घर मिलिकर, कइलन खेती-बधारी। नगर।
यही पाँच में हिस्सा बरोबर, झगरु, बहोर, भिखारी,
मालिक का मालिकान से, अब होई गइलन सरकारी॥ नगर।
कुशल सहित परिवार समेते। बितल उमरिया सारी।
रामनाम के महिमा कही-कही, हुलसत दास 'भिखारी' । नगर।
वार्तिक:
बराबर पट्टीदारी के गृहस्ती में घटी-नफा में हम सामिल होते अइलीं, अब थोड़े दिन से हमार पट्टीदार उठ गइल बा, जेह में अभी तक चार पट्टीदार लोग शामिल बा, हम खानदानी पवनी हुईं। ते में हम बिना कसूर के पट्टीदारी से हटावल गइलीं।
गाना
मन में लागत बा बहुत गलानी, गाँव के हम पवनी खनदानी। टेक।
कइक पुस्त से बास कुतुपुर, जवरे होत किसानी।
ना कुछ चूक भइल गुलाम से, जानस भोला भवानी।
करत बेगारी नारी ढिल भइलन, सहि-सहि शीत-धूप-पानी।
जातिक पेसा नाच कर्म तक, कबहूँ ना मन अलसानी।
सब दिन हाजिर हजूर में बीतल रहत सहत परिसानी।
समय खेत के सेत पुरानी बगदल करम नसानी।
भारी भरोस तिहारो, जय गंगा महारानी। कहत 'भिखारी' दयाकर मइया।
धरती सकल हेरानी। गाँव के हम पवनी खनदानी।
गाना
हमरा कहत लागत बा भारी, नगर से खतम भइल पटीदारी।
नाउ खेदइलन नाच का खिसी, बिचहीं भइल बेभिचारी।
त्राह-त्राह गंगा गति देनी, नगर भिष्म बीर के मातारी।
काटऽ भीर भयंकर कलपत दास भिखारी॥
वार्तिक:
हमार घर पहिले आरा जिला में रहल हा। श्री गंगा जी ढह के समूचा बस्ती दियारा में बस गइल। अबहीं हमार जाति के राजा, दिवान, नाता, गुरु, पुरोहित आग जिला में बा लोगा। हमार बस्ती छपरा जिला, बस्ती भरके खेत बाधार आरा जिला में बा।
कवित्त
आरा जिला ममहर ससुरार फुफहर, आरा जिला परोहित गुरु आरा परिबार है
आरा जिला राजा दिवान छड़िदार आरा डाकघर बबुरा बरह गाँवों में बधार है।
थाना बड़हारा आरा छपरा का मध्य माहिं, परत करीब चकियाँ मटुकपुर बजार है।
ढह कर कुतुपुर गाँव बसल दियरा में, तबहीं से भिखारी कहत छपरा प्रचार है।
कवित्त
बबुरा दोकरियाँ घुसरियाँ कपूर दियारा, इंगलिस सिरसियाँ एकवना एक ग्राम है।
चैन छपरा सबलपुर, सुरतपुर बन्धुछपरा, लगले विशुनपुर बिनगॉवा अस धाम है।
दियरा में देयालचक चकियाँ महाजी, पच्छिम कोटवा महालता में करत अराम है।
हाल के मोकाम गंगा, सरजू का तट माहीं, कहत चौहदी यह 'भिखारी' हजाम है।
कवित्त
उतर खलपुरा महारागंज दरिआवगंज, डोरीगंज चिरान गढ़ मोरध्वज के जनावेला।
गंगा-सरयु पार में अरार पर गुल्टेनगंज मौजे मखदुमगंज डेढ़ दूई कोस पावेला।
शेरपुर घेघटा रउजा घारूटोला तेलपा तक, दियारा के बसिन्दा टोला नयका कहावेला।
कहत 'भिखारीदास' खास शहर छपरा ह, सटले बा नेवाजी टोला पद हद होइ-जावेला।
कवित्त
इहे पता परमान, शहर जिला छपरा गुल्टेनगंज
जिला छपरा मानो साकिन दियारे में कुतुबपुर कहावत है।
डाक मानो साकिन दियारे में कुतुबपुर कहावत है।
नाम है भिखारी हमें जानत जवार सबै जात के हजाम काम छुरा चलावतु है।
ऐसी निखिद जनम देके बिधाता जी ने, कामी क्रोधी समझकर मुझे भक्ति नहीं देतु है।
दोउ कर जोर कही बार-बार। हाय राम हाय हो दीनबन्धु, आप दयालु कहलावतु हैं।
कबित्त
बुबीरा, खलपुरा, मध्य रामनगर दक्षिण, उत्तर पच्छिम सिताब दियारा बाइस टोला।
तहमें बहे सुरसरी-सरयु, सोनभद्र धारा मिला, नाम तिरबेनी, विदित संसार में
ताहि पच्छिम डेढ़ कोस केतुबपुर नगर माहिं, बसत भिखरी नाउ रमई जी के वंश में।
कुल के सहित नमस्कार राम चरन मोहि, त्राहि-त्राहि त्राहि नाथ राखिये शरन में।
जन्म धाम के आल्हा लय में
जन्म धाम के सुनीं बेयान। जिला छपरा नगीचा बाटे गुलटेनगंज पोस्ट हमार।
मौजे कुतुपुर दिअरा में। गंगा यमुना बीच मझार॥
कवित्त
उत्तर खलपुरा महाराज गंजदरिआ गंज डोरी गज्जा बाज़ार गढ़ चिरान स्थान है।
बहत सरयू जी के धार, दक्षिण कोटवाँ दियर सोझे पार दरबार साहूकार खान दान है।
रैयत काटन रब्बीधान, कबहूँ देत ना लगान नालिस करत ना दीवान मालिकान दयावान है।
कहत भिखारी गोलडीन गंज राय साहिब स्कूल, अस्पताल कोठा अब तक नीशान है।
दोहा
जन्म धाम जहवां जइसे तइसे करब बेयान।
वार्त्तिक करिके कवित्त में सुनहु सबे सज्ञान॥
चौपाई
रामानंद सिंह पर उपकारी।
लड़काइ के मित्र हमारी॥
जिमदारी के संगा जिनका,
तनिको गर्व भइलतिम का॥
राम लीला गाँव में कइली।
साथे साथ गदा धइली।
आप सुकंठ बने हम बालि।
माथे साथ में ठोकली ताली॥
युद्ध भइल दंगल के माहीं।
तनिको अमनख लागल नाहीं॥
कह हम टहलु लघु मति मोरी।
तदपी कइलन बराबर जोरी॥
एक गाँव कुतुबपुर नाव।
मुदित भइल बसत तेहि ढाव॥
कहे भिखारी जै हो रामा।
जगत जाल से बाचो जाला॥
इ संगत मिल राख बिधाता।
दया करो शंकर सुख दाता॥
जहाँ बा मंदिर शिव बाबा के. नित उठि तहाँ करें स्नान।
बस्ती रईसन सब रहवैया। बौरउ के शीश नवाय।
(घ) भिखारी ठाकुर की रचनाएँ
सूची पत्र
वार्तिक: हमार बनावल जवन-जवन किताब बा, तेकर नाम लिखत बान।
1. बिरहा बहार
2. राधेश्याम बहार नाटक
3. बेटी-बियोग नाटक
4. कलियुग प्रेम, कलयुग बहार नाटक
5. गबरधिचोर नाटक
6. भाई-बिरोध नाटक
7. श्री गंगा स्नान नाटक
8. पुत्रबधु नाटक
9. नाई बहार
10. ननद-भौजाई सम्बाद
11. भाँड़ के नकल
12. बहार-बहार नाटक
13. नबीन बिरहा नाटक
14. भिखारी शंका समाधान
15. भिखारी हरिकिर्त्तन
16. यशोदा सखी सम्बाद
17. भिखारी चौजुगी
18. भिखारी जै हिन्द खबर
19. भिखारी पुस्तिका सूची
20. भिखारी चउबरन पदवी
21. बिधवा बिलाप नाटक
22. भिखारी भजन माला
23. बुढ़शाला के बयान
24. श्री माता भक्ति
25. श्री नाम रतन
26. राम नाम माला
27. सीताराम परिचय
28. नर नव अवतार
29. एक आरती दुनिया भर के
दोहा
सुरू से आखिर लिखत भिखारी सब किताब के नाम।
श्री गनेश के चरन कमल में करी-कर के प्रणाम॥
'बिरहा बहार' प्रथम मैं गावा। तब 'कलयुग बहार' सुधि आवा॥
'राधेश्याम बहार' हो गइलन। 'बेटी वियोग' के चरचा भइलन।
'कलयुग प्रेम' हो गइलन पाछे। 'गबर घिचोरन' लगलन आछे॥
'भाई बिरोध' सोध के गवलीं। 'सिरी गंगा आसनान' बनवलीं॥
'पुत्र बध' पुस्तक परचार। तजबिज करिहऽ'नाई बहार'॥
'ननद भौजी' कर संवादू'।' भाड़ के नकल' के बुझऽ सवादू॥
'बहरा बहार' के बरबस देखऽ। 'नवीन विरहा' नीके परेखऽ॥
भइल भिखारी नाटक जारी। जेमें नकल बा चारि प्रकारी॥
तब 'भिखारी' संका समाधाना'। साथे-सथे कर सुनहु बखाना॥
ओही अवसर 'भिखारी' हरिकिर्तन'। प्रेम लगाइ के करिहऽ निरतन॥
'जशोदा सखी संवाद' सुहावन। तब 'भिखारी चौयुगी' पावन॥
छपल 'भिखारी जय हिन्द खबर'। विकरा के नेग सराध में जबर॥
तब 'भिखारी पुस्तिका के सुची'। खरिदनिहार के जइसन रुची॥
पुनि 'भिखारी चउवरन पदवी'। 'विधवा विलाप' मनिहऽ अदवी॥
पढ़ऽ 'भिखारी' भजन माला'।' बुढ़साला' के छपल बा हाला॥
'राम नाम माला' पढ़ि लीजे. 'सीता राम से परिचय' कीजे॥
'नव-अवतार' कहाला नर के. एक 'आरती' बा दुनिया भर के॥
दोहा
'मातु भक्ति' श्री नाम रतन, जगह-जगह पर गान।
सब पुस्तिका-समूह में, दीहल बा परमान'॥
(ड़) भिखारी ठाकुर के मान-सम्मान
चौपाई
आइल बुढ़ापा गइल जवानी। हाल के हालत लीखत बानी॥
उन्नतीस आठ चउसठ साल। परल भिखारी के जयमाल॥
पटना कला मंदिर के भीतर। तामा-पत्र पर लिखल पबीतर॥
लाट साहब का सनमुख पवलीं। धन-धन आपन भाग मनवलीं॥
लग्न-महुरत अइसन अइलन। छव से सांझसात बजी गइलन॥
आज के जलसा खुब लउकल। जहाँ के कर्त्ता हरि उप्पल॥
ईश्वर करस जे अइसन दिन। लौटत रहसु हरदम फिन॥
राज समाज के बढ़स बड़ाई. झगरा-झंझट छूटसु लड़ाई॥
शान्ति सत प्रेम चली आवसु। सुख के वर्षा राम बरसावसु॥
एक नव चउंसठ होई गइलन। तबहीं भिखारी लिखनी कइलन॥
भोजपुरी भाषा अबलम्बे। फोटो भइल भिखारी के बम्बे॥
फिलिम रिकार्ड से रेडियो तक। पेपर से झलकत झाकाझक॥
से ही भिखारी निपढ़ हउवन। सत्तर सात बरस के भउवन॥
असहीं जान गइल सब कोई. नइखीं जानत अब का होई॥
राम नाम के महिमा हउवन। एही से जस फइलते गउवन॥
बइठत-उठत-चलत के बेरा। जेकर नजर जहाँ परेला।
तेकरा मुँह से इहे कहाला। हवन भिखारी छपरावाला
कहत बाड़न बुढ़ा-नवही। जीभा पर सरस्वती हवहीन॥
ना त अतिना केकरा आई. सड़सठ पुस्त के नाम सफाई॥
इण्डिया भर में भइल बा सोर। रजिनिके भाई हवन बहोर॥
अइसन भिखारी कइलन तमासा। फइल गइल भोजपुरी भासा।
गाँव-जवार के लोग कहत बा। जे बच्चेपन से साथे रहत बा॥
तेकरा मुँह से अइसन होता। कहत 'भिखारी' सुनऽ सरोता।
दोहा
केहू कहत बा राय बहादुर, केहू कहत शेक्सपियर।
केहू कहत बा कवि भिखारी, घर कुतुपुर दियर॥
चौपाई
नइखी अइसन पदवी जोग। ' मलिक जी, मलिक जी कहत बा लोग॥
घर के भिरी के बाबू-भइआ। पंडित-मूरख-कवि-गवइया॥
से ही बा लोग अइसन बोलत। अवसर पाई के बानी बोलत॥
पाँच तीन पैसठ साल। कलकात्ता में बानी हाल॥
अइसन जुट गइल संयोग। देखे खातिर आवत बा लोग॥
जूता से मिरजइ तक। एके टके टका टक॥
नइखन तनिको पलक गिरत। देखी-देखी के लोग बा फिरत॥
जे केहू जहँवाँ जसहीं रहेलन। आहि में केहू-केहू असहीं कहेलन॥
हवन 'भिखारी' नाई कुल। नामी भइलन महात्मा तुल॥
जवना जगहा भिखारी जालन। तहवाँ बहुत लोग बटोरालन॥
सावन-भादों के उमड़ल घाटा। ओसहीं लोग लागत घेरवाटा॥
यू.पी. चाहे बिहार-बंगाला। एही फोटो पर मचल बा हाला॥
दोहा साथ सैंतींस चौपाई. दियरा के कहत 'भिखारी' नाई॥
वार्तिक:
केहू-केहू कहेला जे भिखारी ठाकुर झूठ-मूठ के नाम कइले बाड़न, से बात ठीक ह। अब ही हमार नाम बहुत कमती भइल बा। जब हम ना रहब, तेकरा पचास बरिस का बाद से नाम फइले-लागी। एक सौ बरिस का बाद पूरा-पूरा नाम हो जाई.
चौपाई
अबहीं नाम भइल बा थोरा। जब यह छूट जाई तन मोरा॥
तेकरा बाद पच्चास बरीसा। तेकरा बाद बीस दस तीसा॥
तेकरा बाद नाम होई जइहन। पण्डित-कवि सज्जन जस गइहन॥
आज ले साठ वर्ष के भउईं। ना इसकुल में लिखनी कउईं।
जीवन चरित्र में देखिये जाई. पहिले से छपल बाटे चौपाई॥
शुक्त आषाढ़ पूर्णा दिन अजुए. तेरह सौ पचपन साल बिरजुए॥
बुधवार के कहत 'भिखारी' । तीस के दोबरी बयस हमारी॥
जइसे लिखलीं सिखलीं गाना। जीवन चरित्र में मिली ठेकाना॥
राम नाम के महिमा भारी। एही जर जस फैलल बिस्तारी॥
गाना
नैया तोहार भैल चहुँ ओर भिखारी ठाकुर।
कृष्ण बलदेव राधे ललिता संग ए भिखारी ठाकुर॥
उमिर के जोरी चारू नाचत झमा झम ए भिखारी ठाकुर॥
धैके अंगुरिया पोर ए भिखारी ठाकुर॥
आँख लुगाई रूप अधिक निकाई ए भिखारी ठाकुर।
नकिया सुगनवाँ के ठोर, ए भिखारी ठाकुर॥
चन्द्रिका बुलाक सारी मुकुट पितामर ए भिखारी ठाकुर।
जात के हजाम बास गंगाजी के तट ए भिखारी ठाकुर।
भाई कहूँ नैयाँ बहोर, ए भिखारी ठाकुर॥
शायरी बिरहा
कहत भिखारी नाई घरवा कुतुपुर में भाई
जेकर नाम भइल बाटे बहुत दूर,
नाम भइल बहुत दूर ले, नाच का लबारी में,
केहू जपत बा गाय चरावत, केहू जपत बनिहारी में।
केहू जपत बा बिरहा गाके, चिखना खाके तारी में।
केहू जपत बार चाउर तउलत, केहू जपत मनिहारी में।
केहू जपत बा हम ना देखलीं, ऊमर भइल बुढ़ारी में।
भोजन करत में बालक सुमिरत, भार-दाल ले थारी में।
केहू जपत बा सेम-साग में, भन्टा तुरत कोड़ारी में।
केहू जपत बा मानुस ना हउवन, हउवन एक औतारी में।
केहू जपत बा दॅवरी, दाँवत, केहू जपत रेड़बारी में।
केहू जपत बा आम गाछ पर, केहू जपत बँसवारी में।
केहू जपत बा इनरा-पोखरा, केहू जपत बँसवारी में।
केहू जपत बा मेंही तरह से, केहू जपत तरकारी में।
केहू जपत बा परिहथ धइले, जोतत खेत बधारी में।
केहू जपत बा साज बजा के, केहू जपत लोहसारी में
केहू प्रेस में गारी छाप के, केहू जपत लयदारी में।
कवि के निन्दा, कवि ना करिहन, चरण के दास तिहारी में।
केहू जपत बा बुरबक कहके, केहू जपत होशियारी में।
केहू जपत बा लुच्चा कहके, केहू जपत सरदारी में,
केहू जपत बा निर्बल कहके, केहू ढीठ बरियारी में।
केहू जपत गुण्डा कहके, केहू जपत बा गारी में।
केहू जपत बा अँगना-दुअरा, केहू जपत फुलवारी में।
केहू जपत बा हयदल-पैदल, मन्दिर केहू अटारी में।
केहू जपत बा जतरा करके, बइठल रेल सवारी में।
पहुँचल नाम बिहार प्रांत भर, राजा-रंक भिखारी में।
देश-विदेश व्याप गइल बा, जगह-जगह नर-नारी में।
जपत सिपाही देत पहरा, जे जवना रोजगारी में।
केहू जपत बा सिख प्रेम में, केहू गिनत रूपधारी में।
जइसे साधु के मन लागत, रामचन्द्र गिरधारी में।
केहू जपत बा लोग फँसवलस, टिकुली-चोली सारी में।
केहू जपत बा दरसन कइलीं, पाप गइल घुनसारी में।
निन्दा निर्गुन सराह सर्गुन, दुनों बा दुनियादारी में।
राम-कृष्ण सुनलन से पढ़ल, जे सारी ससुरारी में।
कहत 'भिखारी' नाई घर बा कुतुपुर में भाई, जेकर नाम भइल बाटे बहुत दूर।
(च) भिखारी ठाकुर का संन्यास
चौपाई
बहुत दूर ले भइल नाम। अब ना करब नाच के काम।
पचिस कारन बहुत सतावन। एही से हमहूँ बानी सुनावत।
सुनहु अरज समाजी लोगा। हम भैली पिसि के लोग।
कारन हमें बनवलस भक देख भैल पिंसिग के हक।
बिरहा
बाटे नाच के समाज से दुख गावत बानी,
आज सोचिला कवनो बिधि से बांचल नइखे जीव॥
परली झोला में कलकत्ता-काशी का बीचे, नइया परल बधेला में॥
गाँव-जवार का चित से गइलीं। सटा के रुपया लेला में॥
आपुस में जो डण्ड करी। कुछ तजबीज कर के पेला में।
केहू कहत बा अच्छा भिखारी। भेटिहन कबों अकेला में॥
वह दिन ना हम मुदई भइलीं। बन्धले फिरीं घघेला में॥
अब हालत अइसन बीतत बा। हिसा बराबर देला में॥
केहू ममहर, केहू फुफहर। जाके जुआ जामा दी मेला में।
डर का मारे बोलत नइखी। परलीं ठेलम ठेला में॥
नकल पाठ में मन ना लागे, घास के जाल ठेला में॥
रामनगर दरबार में नाचेला। केहू ना पूछी अधेला में॥
नइखे रहत बनाव आखरी। बाप-बेटा गुरु-चेला में॥
कहे 'भिखारी' मन फँसी गइल। नाहक नाच का खेला में॥
सोचिला कौनो बिधि से। वांचत नइखे जीव॥
चरण में लाख बार परनाम करत जात के हजाम ह 'भिखारी' ।
कवित्त
खास जिला गया जहाँ देव छत्र छाया लोक,
बेद मन भाया पित्र-पावन-सनमान है।
आह जिला में के बासी ग्राम रसलपुर निवासी.
कथक नथुनी गिरी उदासी वंसी जोगी गुण खान है।
जेकरन नाम गान विद्या के नदान है।
यह कवित्त के बनवैया जिला छपरा के रहवैया।
'भिखारी' गंगा तट बसवैया दियरा कुतुबपुर मकान है।
चौपाई
बिद्या हीन मति मन्द गँवारा। कृपा करहुं अंजनी कुमारा॥
शंकर से विनवों कर जोरी। विष्णु भक्ति में मति रहे मोरी॥
कोटवा दीयर परम सुहावन। जहाँ बहे सुरसरि जल पावन॥
जन्म धाम कुतुबपुर ग्रामा। दलसिंगार है पितु के नामा।
दक्षिण वहै गंगा की धारा। नाई वंश में जन्म हमारा॥
कनउजिया हूँ नाम 'भिखारी' । क्रोध-लोभ से रहत दुखारी॥
इष्टदेव देवि के माना। मंत्र-जाप कुछुओ न जाना॥
त्राहि त्राहि माता जगदम्बा। माया धार के तूहीं अवलम्बा॥
मइया बालक हईं तोहारे। पाप अनुग्रह करहूँ हमारे॥
देवी से मांगी बरदाना। मोही पर दया करसु भगवाना॥
गजल
मरने के वक्त स्वामी अतना करीह ज़रूरी,
मुख में परे गंगाजी के जल। खाली न डलिह तुलसी के दल,
धोवल विष्णु चरण कमल, वोहि के मानब संजीवन बुटी॥ मरने के वक्त॥
अकाल मृत्यु होने न पावे, कुछ रोग भी न सतावें,
दूत तनिक दरस ना आवे, मुझसे छुट जाय यमपुरी
जारस गाँव-गोत्र परिवार, हड्डी बहे सुरसरि के धार
ब्राह्मण कर्मकाण्ड व्यवहार, करिके कलह किला दीहऽ तुरी॥ मरने के वक्त॥
जय कृष्णाचन्द्र बलराम, माथे मोर मुकुट धनश्याम
श्री नटनागर शोभा धाम, 'भिखारी' चाहत चरण के धूरी॥ मरने के वक्त॥
दोहा
भोजपुरी भाषा में, भाषण करत भिखारी दास।
कुतुबपुर दियारा बासी, चार बरण के पासऽ।