भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आहुति का हुतशेष हवन घृत / रामइकबाल सिंह 'राकेश'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामइकबाल सिंह 'राकेश' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
कुंठित क्या न अकंुठित दर्शन, | कुंठित क्या न अकंुठित दर्शन, | ||
नाभिबिन्दु प्रज्ञा का कम्पित? | नाभिबिन्दु प्रज्ञा का कम्पित? | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
</poem> | </poem> |
15:27, 18 मई 2018 के समय का अवतरण
आहुति का हुतशेष हवन घृत,
कहाँ धरा में करूँ समर्पित?
गहन कालनद में अन्तर्मन,
तड़प-तड़प करता वनरोदन
सत्य न जीवन का अभिव्यंजन-
कर्मों के रूपों में विम्बित।
प्राण-प्राण में विषमय दंशन,
मौन वेदना का उद्वेलन,
चिन्मयता का आत्मनिवेदन,
भू के आलिंगन में मूर्छित।
लपटों में आशा का मधुवन,
ज्वलित चिता का जैसे इन्धन,
कुंठित क्या न अकंुठित दर्शन,
नाभिबिन्दु प्रज्ञा का कम्पित?