"संयुक्त इकाई / रामइकबाल सिंह 'राकेश'" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामइकबाल सिंह 'राकेश' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:58, 18 मई 2018 के समय का अवतरण
मैं निखिल भुवन की वंशीध्वनि से एकतान!
जग के नभ-जल-थल से मैं एक अभिन्नप्राण!
ले रहे साँस मुझमें आसिन्धु क्षितिजमण्डल,
दिन-रात स´््चरित परिवर्त्तनमय पवनपटल!
होता है मेरे मन के समतल दर्पण पर-
सम्पूर्ण विश्व के सत्य-विम्ब का आवर्त्तन!
सब स्रोतो से मैं करता हूँ एकान्त सत्य का गन्धग्रहण!
पहले होते मुझमें स्वर-व्य´्जन के कम्पन-उत्थान-पात!
फिर मेरी कम्प-तरंगों की गति से अणुओं में आन्दोलन!
जब ध्वनित एक वीणा का होता एक तार,
तब सुनता निकटवर्त्तिनी वीणा से मैं वैसा ही निनाद!
जिन लहरों से उठती वीणा से ग्राम, मूर्छना, मीड़-तान,
वे अन्य तारवाली वीणा के आस-पास भी विद्यमान!
मानव मानव से, देश-देश से नहीं भिन्न!
जैसे सागर की एक लहर से अन्य लहर-
संयुक्त, परस्परसंयोजित,ग्रन्थित, अभिन्न!
क्या अनन्तत्व के प्रांगण में सीमा-रेखा का कहीं स्थान?
मैं हूँ असीम की स्वर-लहरी से एकतान!
भरता प्रेमालिंगन में ऊर्ध्व-अधः को मेरा चेतन मन!
करता जयघोषण निखिल काल की आत्मा का मेरा गायन!
मेरे पंचम स्वर ने वसन्तचारण कोकिल को गान दिया!
मेरे नयनों ने नयनों को आलोककिरण का दान दिया!
तरु-पल्लव को मुसकान-सुमन का बाण दिया।
नभ की गंगा को रंग-तरंगों का स्वर्णिम परिधान दिया।
जब प्राण-प्राण की अन्तर्ज्वाला दिगदिगन्त में भड़क उठी;
तो वसुन्धरा की अन्तर्वेदी दरक उठी!
घन में लपटों से घिरी दामिनी कड़क उठी!
मेरे अन्तर में लहर उठी वेदना विरन्तन गान बनी!
मेरी चिन्तना-चकोरी चुगने लाल-लाल अंगार लगी!
मेरे स´्चारी भावों का लहरान्दोलन पल-निमिषों में
घटनाओं के परिवर्तन का आधार हुआ!
मेरे विराट दर्शन के ताने-बाने में-
वामन मानव के चरणों का विस्तार हुआ।
पाता मैं दिगंगनाओं के अंगों का मादन आलिंगन!
करता असीम की गान-तरंगों के शिखरों पर आरोहण!
(30 अगस्त, 1973)