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राग तिलक कामोद
मिलन-निशा-वेला में तुमने मुझे बुलाया;
रूप-चित्र का उन्मीलन कर हृदय जलाया।
राग-सिन्धु में बड़वानल का ज्वार उठाया;
गरल-पान कर स्वयं मुझे पीयूष पिलाया।
प्राण प्राण से दो मिला-
परिरम्भण में लीन कर;
भेद द्वैत का है कहाँ?
क्षर-अक्षर में एक स्वर।
(25 मार्च, 1974)