भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कृपा तुम्हारी / रामइकबाल सिंह 'राकेश'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामइकबाल सिंह 'राकेश' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:36, 18 मई 2018 के समय का अवतरण

दौड़ रहा मैं इधर-उधर गतिपथ से हट कर,
देखा कभी न हृदयचक्षु से पीछे मुड़ कर।
कृपा-दृष्टि की किरणमालिका अनलवृत्त बन,
चमक रही करने आलोकित अन्तर्लोचन।

पवन तुम्हारी कृपादृष्टि का भूमण्डल पर,
बहता ही रहता निशि-वासर हर-हर ध्वनि पर।
कृपा तुम्हारी शीतकाल में वरद तुहिन-सी,
तीव्र दहन में आर्द्र बनाती कज्जल घन-सी।

कृपा तुम्हारी अन्तरिक्ष में स्वर्णतड़ित वन,
काली निबिड़ निशा में कभी कौंधती प्रतिक्षण।
अमृतनिर्झरी कृपा बरसती जड़-चेतन पर,
सर्वकाल में दाएँ-बाएँ नीचे ऊपर।

लेकर अंश तुम्हारी कृपा-किरण का जलधर,
प्यास बुझाते वसुधा की, सागर से जल भर।
उठती रहती जिसकी प्रतिध्वनि हिमशिखरों से,
सर्पिल कुण्डलियों में बल खाती लहरों से।

कर पाते अनुभूति न जिसकी बहिष्प्रज्ञ जन,
हतप्रभ होते दुखविभीषिका का कर दर्शन।
रचा विधान दुखों का तुमने क्या न कृपा कर?
सहन उन्हें करने का दो बल अन्तर में भर।