भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चैती-कहरबा / रामइकबाल सिंह 'राकेश'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामइकबाल सिंह 'राकेश' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:53, 18 मई 2018 के समय का अवतरण
गगनदेश के ख्ुाले किबारे,
घन सावन के आए।
आसावरी-ध्रुपद में गाते,
मोर नाचते आए।
जान न पाया कब-क्यों, कैसे,
सिन्धु छोड़कर आए।
बिना कहे ही मुझसे मिलने,
हृदय लगाने आए।
अपने अंगों में न समाकर,
मेरे कारण आए।
उठा बगूले धूमकेतु के,
घटाटोप घन आए।
बिजली के पायल चमकाते,
कड़कनाद कर आए।
रंग-बिरंगे परिधानों में,
मन हुलसाने आए।
झहराते काजल के पर्वत,
कामरूप घन आए।
कभी सलिल बन, कभी मरुत बन,
कभी तड़ित बन आए।
आँखों से मोती ढरकाते।
वायुयान पर आए।
मालकौस-चौताल सुनाने,
मेघ बावरे आए।