"जिसका कंथ रहै ना पास, कामनी रहती रोज उदास / राजेराम भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) छो (Sharda suman ने 02 जिसका कंथ रहै ना पास, कामनी रहती रोज उदास / गोपीचंद-भरथरी / राजेराम भारद्वाज पृष्ठ [[02 जिस...) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) छो (Sharda suman ने 02 जिसका कंथ रहै ना पास, कामनी रहती रोज उदास / राजेराम भारद्वाज पृष्ठ [[जिसका कंथ रहै ना पास...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:24, 21 मई 2018 का अवतरण
(2)
सांग:- गोपीचंद-भरथरी & अनुक्रमांक-26
जवाब - गोपीचंद का गुरु गौरख से।
जिसका कंथ रहै ना पास, कामनी रहती रोज उदास,
छः रूत बारा मास, बिचारी दुखिया मन मै ।। टेक ।।
चैत गया चमक रही ना सै, यो बैसाख बदन बट खा सै,
तेज हवा सूर्य तपै आकाश, गहरी धूप जेठ की प्यास,
गई निर्जला ग्यास, पिया बिन दुख भारी तन मै ।।
साढ़ मै रूत आवै बरसण की, तीज त्यौहार घटा सामण की,
ना झूलण की आस, करके मणि का प्रकाश,
जैसे काली नागण घास, करै खिलारी सावन मै ।।
भादुआ-आसोज गया दशहेरा, कातक कोतक करै भतेरा,
मेरै मंगसर-पोह की चास, मांह की बसंत पंचमी खास,
गए छोड हंसणी नै हांस, उडारी लेगे गगन मै ।।
फागण गया दूलहण्डी फाग, पिया-ऐ-गेल्या गया सुहाग,
घर त्याग लिया संन्यास, राजेराम लिखै इतिहास,
कद गोपनियां मै रास, करै गिरधारी मधूबन मै ।।