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हाथी दादा ओढ़ लबादा
पहुँच गए बाजार,
जूतों की दूकान देखकर
माँगे जूते चार।
भालू जूते वाला बोला-
‘बड़ा आपका नाप,
इतने बड़ी न बनते जूते,
दादा, कर दो माफ!’
[नन्दन, अक्तूबर 1973]