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"बंदरिया और बाईसिकिल / बालकृष्ण गर्ग" के अवतरणों में अंतर
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बाइसिकिल पर बंदरिया थी
बंदर जी के पीछे,
उनको ही पकड़े बैठी थी
डर से आँखें मीचे।
गड्ढे पर जब बड़े ज़ोर से
बाइसिकिल थी उछली,
बोली-‘जल्दी रोको इसको,
आती मुझको मितली’।
[लोटपोट (साप्ताहिक), सं॰ 244]