भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"‘लेट’- लतीफा / बालकृष्ण गर्ग" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालकृष्ण गर्ग |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
{{KKCatBaalKavita}}
 
{{KKCatBaalKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
कहा गधे ने पहुँच ‘शाप’ पर-
+
घोडा काफी देरी से जब
‘लेने आया मोल;
+
पहुँच अपने दफ्तर,
बड़िया से बादाम छाँटकर
+
‘रोज लेट आते हो क्यों तुम’
पाँच किलो दे तोल!’
+
-घुड़का बंदर अफसर।
मुर्गा मेवे वाला बोला-
+
घोडा बोला-‘नहीं, नहीं सर!
‘पहले जेब टटोल;
+
ऐसा कभी न होता;
भाव पाँच सौ रुपए किलो है
+
मैं न लेटता, कभी न लेटा,  
कितने तोलूँ, बोल?’
+
खड़े-खड़े ही सोता’।
[रचना: 27 सितंबर 1996]
+
 
 +
[बालक, जुलाई 1977]
 
</poem>
 
</poem>

14:22, 22 मई 2018 के समय का अवतरण

घोडा काफी देरी से जब
पहुँच अपने दफ्तर,
‘रोज लेट आते हो क्यों तुम’
-घुड़का बंदर अफसर।
घोडा बोला-‘नहीं, नहीं सर!
ऐसा कभी न होता;
मैं न लेटता, कभी न लेटा,
खड़े-खड़े ही सोता’।

[बालक, जुलाई 1977]