भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"घड़ी / बालकृष्ण गर्ग" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालकृष्ण गर्ग |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:46, 22 मई 2018 के समय का अवतरण

टिक-टिक-टिक-टिक बोल रही,
मेरी पहली सीख यही-
‘समय न बीते व्यर्थ कहीं’।

टिक-टिक-टिक-टिक बोल रही,
मेरी पहली सीख यही-
‘काम समय पर करो सही’।

टिक-टिक-टिक-टिक बोल रही,
मेरी अंतिम सीख यही-
‘बूरे काम तुम करो नहीं’।
[नवभारत टाइम्स (मुबई), 24 फरवरी 1976]