भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बनूँ नवाब / बालकृष्ण गर्ग" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालकृष्ण गर्ग |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:47, 22 मई 2018 के समय का अवतरण
किस्सों की बस, पढ़ूँ किताब,
‘मियाँ पढ़क्कू’ मिले खिताब।
रहूँ खेलने को बेताब,
जल्दी आए अपना दाँव।
गुस्से में खा जाऊँ ताव,
जिससे अपना रहे रुआब।
रात और दिन देखूँ खवाब-
‘करूँ न मेहनत, बनूँ नवाब’।
[बालमेला, नवंबर 1990]