भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गाजर का हलवा / उषा यादव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उषा यादव |अनुवादक= |संग्रह=51 इक्का...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:29, 22 मई 2018 के समय का अवतरण

पन्द्रह बोरी गाजर आए,
ग्यारह बोरी शक्कर।
पाँच कनस्तर घी आ जाए,
काजू बोरी भरकर।

और दूध?
माँ, आ सकता क्या,
पूरा एक टैकर?
ढेर-ढेर गाजर का हलवा,
बने हमारे घर पर।

कई दिनों तक
तुमको भी फिर
हो रसोई से फुर्सत।
बैठे धूप में स्वेटर बुनना
फिक्र कोई रखना मत।

हलवा खूब,
उड़ाएंगे हम,
सुबह-शाम या दुपहर।
देखा, जाड़े के मौसम में,
खूब बिक रही गाजर।