"घर बनाते / कौशल किशोर" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कौशल किशोर |अनुवादक= |संग्रह=वह और...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:59, 22 मई 2018 के समय का अवतरण
यह मोहल्ले का कोई पार्क नहीं
बच्चों के खेल का मैदान भी नहीं
मेरा घर है
मैं बन्द रखना चाहता हूँ
बाहर की ओर खुलने वाली
इसकी सारी खिड़कियाँ
दरवाजे
हर झरोखे
सब कुछ सुरक्षित है यहाँ
परदे के अन्दर
मैं रखना चाहता हूँ इन्हें
ढ़क कर
छिपा कर
दुनिया की नजरों से बचाकर
ये कीमती बनी रहेंगी ऐसे ही
हमारी इज्जत का सम्मोहन कायम रहेगा
आपके बीच
हम बने रहेंगे पानीदार
मेरी पत्नी है
इन्हें पसन्द नहीं
बन्द बन्द
उसका जी घुटता है बन्द घर में
मन घबड़ाता है
वह खुला रखना चाहती हैं
खिड़कियाँ और दरवाजे
बेरोक टोक हवा आ जा सके
घर में हो पर्याप्त रोशनी
कहती है
हमारे पास है ही क्या
जिसे छिपाकर रखा जाय जतन से
जीवन से अमूल्य है क्या कुछ
मैं चाहती हूँ खुली हवा में साँस लेना
लहराना चाहती हूँ अपने लम्बे खुले बाल
चिडि़या होने का अहसास जीना चाहती हूँ
महसूस करना चाहती हूँ
अपना होना
ऐसा ही कुछ
इस दुनिया में
मैं बनाना चाहता हूँ अपना घर
पत्नी को भी बेहद प्यार है घर से
पर ऐसा होता है कि
घर बनाते बनाते
हम नदी के दो विपरीत छोरों पर
अपनी अपनी पीठ किये
हो जाते हैं खड़े।