भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सूरज उगेगा / यतींद्रनाथ राही" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=यतींद्रनाथ राही |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:40, 23 मई 2018 के समय का अवतरण

बो दिया है जो पसीना
अंकुरित होगा
फलेगा।

दिन तुम्हारे हैं
समय है
और है वातावरण भी
आज, सब कुछ सहज ही
होता तुम्हे है
संवरण भी
हैं अकेले आज हम
पर, कारवाँ भी
कल बनेगा।

देखकर दीवानगी
करते रहोगे तुम उपेक्षित
सत्य यह है
एक दिन
होगा यही तुमको अपेक्षित
हम रहें
या ना रहें भी
पंथ तो
यह ही रहेगा।

सत्य पर
परदे गिरा कर
ज़िन्दगी ठहरी नहीं है
अनसुनी कोई करे
इन्सानियत
बहरी नहीं है
इन अँधेरों में
कभी तो
फिर नया
सूरज उगेगा।
4.10.2017