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मन करता है
भूली सुधियाँ
फिर
कोई आकर दुलराये
दर्द बहुत है
कौन बचा है
जीवन तो
फिर भी जीना है
पीना पड़े गरल ही
तो फिर
शहद घोल कर ही पीना है
भीगी ओस
चाँदनी कोई
काँधे पर आकर सो जाये।
प्राणों की
मधुगन्ध बावरी
और अधर के
प्यासे पाटल
एक बार तो फिर झरने दो
सावन के
मनभावन बादल
फिर पीहू का बोल
कान में
बूँद-बूँद अमृत छलकाये।
वह चन्दन की छुअन
दीप की बाती
सूनेेे घर में
ग्रन्थ पढ़े थे कितने हमने
एक मौन के स्वर में
वे नयनों के प्रश्न
गाल पर
लिखे
गीत अनगाये।
14-12-2017