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"ज़हर पिया था / यतींद्रनाथ राही" के अवतरणों में अंतर

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12:52, 23 मई 2018 के समय का अवतरण

बैठ गये मुंह फेर दूर जा
जिनको हमने प्यार दिया था

कुछ के सपने बहुत बड़े थे
छोटे लगे दायरे उनको
पंखों में आकाश बँधे थे
ये गलियाँ बन्धन थी जिनको
चलते थे जो राजपंथ पर
अर्थ अनर्थ बाँध मुट्ठी में
सोने की चम्मच से मधुरस
आये थे पीकर घुट्टी में
क्या जाने वे हमने कैसे
माटी से श्रृंगार किया था।

अपने आसपास रिश्तों का
पूरा महाजाल था विस्तृत
पर जो उनको
जटिल त्याज्य थे
कैसे वे कर लेते स्वीकृत
झूलाघर से वृद्धाश्रम तक
जिनकी मनुस्मृति का
अथ इति
कैसे समझ सकेंगे
हम अब
उनके दर्शन की
यह मति-गति
कैसी श्रद्धा
कहाँ समर्पण
उनने तो
बाज़ार जिया था

दोनों ओर
फासले लम्बे
और बीच में यह सागर है
हैं लहरों की जटिल उलझने
उठते हुए ज्वार का डर है
गिनते रहो बैठ लहरों को
फैन बटोरो शंख सीपियाँ
लिखते रहो
रेत पर बैठे
झरते आँसू, घुटी सिसकियाँ
महादेव बनने से पहले
नीलकण्ठ ने, ज़हर पिया था।
23.12.17