भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खड़िया / मोहन राणा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन राणा |अनुवादक= |संग्रह=शेष अन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:28, 23 मई 2018 के समय का अवतरण

रोवन की बेरियाँ लदी डालों में
कांपता है समय अगस्त की बेचैन रोशनी में
डर के सरपट ची$खती काली चिड़िया मेरी आहट से
भरती एक उड़ान पड़ोस की बाड़ में,
कई बरस रहते हुए मैंने नहीं जाना कभी
उसके पार भी इस पार है यहाँ कोई
सोचता यही मुझ जैसा ही

कहीं पार हो जायें बनें कोई निशान
उधर किसी को याद आए किसी परदेस अपने,
फ्रिज़ पर लगी पीली पड़ती जा रही है जहाँ की सीपीया तस्वीर
और हम तलाशते थे लापता घर एक नज़र कभी उस पर डाल
जिसके बाहर लिख दें खड़िया से नाम अपना
जो लिखा नहीं अभी किसी किताब में।