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"नीर की गाथा / कमलकांत सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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कुछ तो कहो तुम
नीर की गाथा प्रिये
बरसात बीती जा रही है।

कोयल की कुहू-कुहू, मोरों के नृत्य।
मीठे हैं मौसम के उद्घाटित कृत्य।
सतरंगी इंद्रधनुष सौंधी है गंध
सुमनों में उपवन के सम्मोहित सत्य।

हाँ, छेड़ दो तुम
प्यार की कविता प्रिये
बरसात बीती जा रही है।

है सर्वव्यापी मदभरा वातावरण।
कौन प्यासा अब रहेगा तृप्ति के क्षण?
आकाश में भी मन रहे उत्सव अजब
बादल उठाते चांदनी का आवरण।

अब खोल दोतुम
बूंद की कारा प्रिये
बरसात बीती जा रही है।