भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तू क्यों बैठ गया है पथ पर? / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
 
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|संग्रह= निशा निमंत्रण / हरिवंशराय बच्चन
+
|संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन
 
}}
 
}}
  

15:50, 26 जुलाई 2008 का अवतरण


तू क्‍यों बैठ गया है पथ पर?


ध्‍येय न हो, पर है मग आगे,

बस धरता चल तू पग आगे,

बैठ न चलनेवालों के दल में तू आज तमाशा बनकर!

तू क्‍यों बैठ गया है पथ पर?


मानव का इतिहास रहेगा

कहीं, पुकार पुकार कहेगा-

निश्‍चय था गिर मर जाएगा चलता किंतु रहा जीवन भर!

तू क्‍यों बैठ गया है पथ पर?


जीवित भी तू आज मरा-सा,

पर मेरी तो यह अभिलाषा-

चिता-नि‍कट भी पहुँच सकूँ मैं अपने पैरों-पैरों चलकर!

तू क्‍यों बैठ गया है पथ पर?