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"रख निशानी महकने लगी / उत्कर्ष अग्निहोत्री" के अवतरणों में अंतर

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रख निशानी महकने लगी।
इक दिवानी महकने लगी।

अगमन आपका जब हुआ,
ज़िन्दगानी महकने लगी।

दीप तुलसी पे जलने लगा,
रातरानी महकने लगी।

गद्य जब काव्यधर्मी हुआ,
इक कहानी महकने लगी।

वृक्ष चन्दन का उसने छुआ,
नागरानी महकने लगी।

संस्तवन फिर हुआ राम का,
बोली बानी महकने लगी।