भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रख निशानी महकने लगी / उत्कर्ष अग्निहोत्री" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उत्कर्ष अग्निहोत्री |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:13, 27 जून 2018 के समय का अवतरण
रख निशानी महकने लगी।
इक दिवानी महकने लगी।
अगमन आपका जब हुआ,
ज़िन्दगानी महकने लगी।
दीप तुलसी पे जलने लगा,
रातरानी महकने लगी।
गद्य जब काव्यधर्मी हुआ,
इक कहानी महकने लगी।
वृक्ष चन्दन का उसने छुआ,
नागरानी महकने लगी।
संस्तवन फिर हुआ राम का,
बोली बानी महकने लगी।