भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भूख / अंकिता जैन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंकिता जैन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:38, 4 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

बच्चा
पहचान लेता है अंधेरे में भी
दूध से भरी छातियाँ
और हम
बड़े होते हुए भी
नहीं पहचान पाते
अपनी भूख
कि ये पेट की है
या स्वार्थ की,
मन की है
या शरीर की,
इच्छाओं की है,
या बदले की,
और तड़पते रहते हैं
ताउम्र
उसी भूख की तड़प से
उसे
अलग-अलग नामो से पुकारते हुए
ओढ़े रहते हैं चादर
समझदारी की
और भीतर दुपकाए रखते हैं
अपनी मूर्खता
जो रोकती रहती है हमें
पहचानने से हमारी भूख