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"ये बदतमीज लड़कियां / पंकज चौधरी" के अवतरणों में अंतर

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16:47, 10 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

अपनी-अपनी ड्यूटी से घर लौट रही ये लड़कियां
भरी मेट्रो ट्रेन में अपने-अपने ब्वायफ्रेंड को किस कर दे रही हैं
लड़कों के बालों में अंगुलियां ि‍फरा दे रही हैं
उनके कंधों पर अपने हाथों को रख दे रही हैं
और ऐसे आंख मार रही हैं
जैसे उनको भारी तलब लग गई हो
जबकि लड़के हैं कि लाज से मारे जा रहे हैं
अपनी-अपनी फ्रेंडों से दूर भागने की कोशिश में हैं
तब भी लड़कियां हैं कि गगनचूम्बी हंसी छोड़ रही हैं
आप कह सकते हैं कि ये बदतमीज लड़कियां हैं
शराब पी रखी होंगी
सिगरेट तो इन्हें पीते ही देखा है
सारी शर्मो-हया को घोंट लिया है
तमाम मर्यादाओं, परंपराओं, आस्‍थाओं, संस्कृति को रौंद दिया है
आप इनके बारे में कुछ भी कल्पना कर सकते हैं
और हो सकता है कि आपकी कल्‍पना यथार्थ के काफी करीब भी हों
या आपकी कल्‍पना से भी काफी आगे निकल चुकी हों ये लड़कियां
जैसे
सेक्स पर वे
आपकी भाषा में बिच होकर बोलती हैं
और अपने तरोताजा, हंसमुख और सुंदर होने का राज
सुबह, दोपहर और शाम की सेक्स को बताती हैं
अगर आप
उसके ऊरोजों की तुलना गुम्‍बदों से करते हैं
नितंबों को विंध्याचल पर्वत की उपमा देते हैं
और उसकी योनि को जवाहर सुरंग सरीखी बताते हैं
तो इसका उसे कोई उज्र नहीं
इसको तो वे अपना शानदार विज्ञापन ही मानती हैं
और जब वे खुद-ब-खुद
अपने ब्रेस्ट, क्लीवेज, बटोक्स़
और वजाइना के बारे में
बिंदास होकर बोल रही हों तो पिफर क्या कहने
दोस्ती के पहले ही दिन
अपने ब्वॉयफ्रेंड से वे यह पूछना नहीं भूलतीं
कि तुम्हा्रा साइज क्या है
किसी महिला का अपने पुरुष मित्र से यह सवाल
बिलकुल वैसा ही है जैसा किसी पुरुष का अपनी होने वाली पत्‍नी से
उसकी वर्जिनिटी से संबंधित सवाल बार-बार करना
वर्जिनिटी इन लड़कियों के लिए महापाप का कारण है
और इसे वह उन पाखंडी साध्वियों-संन्यासिनों के लिए छोड़ती हैं
जो पता नहीं अपने कौमार्य का चढ़ावा
कितनी-कितनी बार योगियों, महाराजाओं और शंकराचार्यों को चढा चुकी होती हैं
प्री-मैरिटल सेक्स में यकीन करने वाली ये छोरियां
बेडरूम में अपने पार्टनर का बढ़-चढ़कर सपोर्ट करती हैं
सेक्स की एक-से-एक तरकीबों को आजमाती हैं
और जब वे अपने पार्टनर के ऊपर चढ़ जाती हैं तो वे यह भूल जाती हैं कि मर्द को सदैव ऊपर और औरत को नीचे होना चाहिए
वह अपने पार्टनर का जब उद्याम भोग कर लेती हैं
तो उसे एक जोरदार किस देना भी नहीं भूलतीं
और इस तरह वे बेडरूम से
किसी मर्द का सेक्सगुरु होकर निकलती हैं
वे पहनने के लिए आज
साड़ी और सूट का सेलेक्शन नहीं करतीं
बल्कि टाइट जिंस और खुली बांहों वाली टॉप-स्कर्ट
उसकी प्राथमिकताओं में शुमार है
ताकि इनसे वे कम्फोर्टबल तो रह ही सकें
साथ ही साथ उनके शारीरिक सौन्दर्य और गोलाइयों की भी
सटिक और अचूक अभिव्‍यक्ति हो सके
और ऐसा करते हुए वे
बड़े-बुजुर्गों की उस सीख को भी धता बता रही होती हैं
जो ‘आपरूपी भोजन और पररूपी श्रृंगार’ की नसीहत बघारते नहीं थकते

सेक्‍स और देह उसके लिए आज कोई टैबू नहीं
उसकी देह पर आज किसी और का पेटेंट नहीं
जिसकी देह उसी का पेटेंट सही
देह उसकी तो मर्जी भी उसकी
देह उसकी तो जागीर भी उसी की
उसकी देह और शारीरिक संरचना
आज मजबूरी नहीं बल्कि मजबूती में तब्‍दील हो गई हैं
मेट्रो की लड़कियां
जितनी ज्यादा स्वाबलंबी
उनकी देह उतनी ही आजाद
और जिसकी देह जितनी ज्यादा आजाद
जीवन की राहों पर वह उतनी ही आबाद

और घर की जंजीरें उतनी ही कमजोर।