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"जाति की महत्ता / पंकज चौधरी" के अवतरणों में अंतर

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भूमिहार मिलता है
तो भूमिहार हो जाता है

ब्राह्मण मिलता है
तो ब्राह्मण हो जाता है

राजपूत मिलता है
तो राजपूत हो जाता है

कायस्थ मिलता है
तो कायस्थ हो जाता है

बनिया मिलता है
तो बनिया हो जाता है

जाट, गुर्जर मिलते हैं
तो जाट, गुर्जर हो जाता है

यादव मिलता है
तो यादव हो जाता है

कुर्मी, कोयरी मिलते हैं
तो कुर्मी, कोयरी हो जाता है

चमार मिलता है
तो चमार हो जाता है

पासवान, खटिक मिलते हैं
तो पासवान, खटिक हो जाता है

अब सवाल यह पैदा होता है
कि आधुनिक भारत में
जाति की यह अवसरवादिता है
या उसकी महत्ता?