"किस जाति से हो? / पंकज चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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यह सवाल
अंततः दाग ही दिया
मुझ पर उसने कि
किस जाति से हो?
ऐसा नहीं है कि
यह सवाल
सिर्फ उसी के मन में
उमड़-घुमड़ रहा था
बल्कि हकीकत तो यह है कि
यह सवाल
पूछने को मैं भी बेताब हुआ जा रहा था
बातचीत के दरमियान उससे
इसी सवाल (जिज्ञासा, उत्कंठा) को
पूछने और उसका जवाब जानने के लिए
सवाल-दर-सवाल किए जा रहे थे
भारत में जब तक यह सवाल नहीं किया जाता
और इसका जवाब नहीं मिल जाता
तब तक प्राण अटका रहता है
जमीन और आसमान के बीच
कईयों को तो अन्न-जल भी ग्रहण नहीं होता
बगैर इस सवाल को पूछे
भले ही उसे
इसका जवाब मिले या नहीं मिले
यहां मनुष्य तो क्या
देवी-देवताओं के मन में भी
कुलबुलाता रहता है यह सवाल
हमारे जीन में
शामिल हो चुका है यह सवाल
यहां हर मुलाकात का आरंभ और अंत
करता है यह सवाल
भारत का आरंभ भी
इसी सवाल से हुआ होगा
और भारत का अंत भी
इसी सवाल से होगा.