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17:03, 10 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
उसने पच्चीस हजार के कपड़े खरीदे
बीस हजार के जूते
अस्सी हजार के गहने खरीदे
और बीस हजार के खिलौने
उसने दस हजार के फल-फूल भी खरीदे
तो बीस हजार के मेवा-मिष्ठान्न
ये सब खरीदारियां
उस दोस्त के सामने होती रहीं
जिसको फकत दो हजार की दरकार थी
कर्ज के रूप में
मुंह खोलकर बोला था उसने
लेकिन आंखें नम कर चला आया
धन-दौलत का चरित्र
इतना बेरहम और भयानक हो सकता है
उसका इतना बेजा, फूहड़ और भौंडा प्रदर्शन हो सकता है
और किसी जरूरतमंद का
इतनी बेरहमी से मजाक उड़ा सकता है
उसका इससे बेहतर उदाहरण
और कहां मिल सकता है।