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"ओ ! माँआद्या प्रकृति / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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+ | जीवन के विषाद | ||
+ | न प्रतिदान | ||
+ | कभी कोई भी चाहा, | ||
+ | दुस्साहस है | ||
+ | तुझ पर लिखना | ||
+ | कोई रचना , | ||
+ | क्योंकि मैं तो हूँ स्वयं | ||
+ | तेरी रचना | ||
+ | मैं अपूर्ण, तू पूर्ण | ||
+ | रह न सकूँ | ||
+ | बिन कहे-लिखे भी | ||
+ | मैं हूँ कृतज्ञ | ||
+ | स्नेहमयी समझ | ||
+ | मेरा निःशब्द मौन ! | ||
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07:31, 14 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
निज चिन्ताएँ
और उद्वेग सभी
तुझको सौंपे
ओ माँ ! आद्या प्रकृति
वर सदैव
अनंत चुम्बन भी
मेरे मस्तक
धरे तूने नित माँ
हरती रही
जीवन के विषाद
न प्रतिदान
कभी कोई भी चाहा,
दुस्साहस है
तुझ पर लिखना
कोई रचना ,
क्योंकि मैं तो हूँ स्वयं
तेरी रचना
मैं अपूर्ण, तू पूर्ण
रह न सकूँ
बिन कहे-लिखे भी
मैं हूँ कृतज्ञ
स्नेहमयी समझ
मेरा निःशब्द मौन !