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+ | तुम चले चल उठी वायु रूप-वन की | ||
+ | झुक झूम-झूमकर डाल-डाल डोली, | ||
+ | मायावी घूँघट उठते ही क्षण में | ||
+ | रुक गया समय, पिघली दुख की बदली। | ||
+ | तुम गए, गई झर मन की कली-कली॥ | ||
− | + | रेशमी रजत मुस्कानों में रँगकर। | |
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− | + | बन गई अमावस पूनों सोने की, | |
− | + | चाँदी से चमक उठे पथ गली-गली। | |
− | तुम गए, गई झर मन की कली-कली॥ | + | तुम गए, गई झर मन की कली-कली॥ |
− | + | तुमने निज नीलांचल जब फैलाया, | |
− | + | दोपहरी मेरी बनी तरल छाया, | |
− | + | लाजारुण ऊषे झाँकी झुरमुट से, | |
− | + | निज नयन ओट तुमने जब मुस्काया, | |
− | + | घुँघरू सी गमक उठी सूनी संध्या, | |
− | + | चंचल पायल जब आँगन में मचली। | |
− | तुम गए, गई झर मन की कली-कली॥ | + | तुम गए, गई झर मन की कली-कली॥ |
− | + | हो चले गए जब से तुम मनभावन! | |
− | + | मेरे आँगन में लहराता सावन, | |
− | + | हर समय बरसती बदली सी आँखें, | |
− | + | जुगनू सी इच्छाएँ बुझतीं उन्मन, | |
− | + | बिखरे हैं बूँदों से सपने सारे, | |
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21:11, 19 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
तुम आए कण-कण पर बहार आई
तुम गए, गई झर मन की कली-कली।
तुम बोले पतझर में कोयल बोली,
बन गई पिघल गुँजार भ्रमर-टोली,
तुम चले चल उठी वायु रूप-वन की
झुक झूम-झूमकर डाल-डाल डोली,
मायावी घूँघट उठते ही क्षण में
रुक गया समय, पिघली दुख की बदली।
तुम गए, गई झर मन की कली-कली॥
रेशमी रजत मुस्कानों में रँगकर।
तारे बनकर छा गए अश्रु तम पर,
फँस उरझ उनींदे कुन्तुल-जालों में,
उतरा धरती पर ही राकेन्दु मुखर,
बन गई अमावस पूनों सोने की,
चाँदी से चमक उठे पथ गली-गली।
तुम गए, गई झर मन की कली-कली॥
तुमने निज नीलांचल जब फैलाया,
दोपहरी मेरी बनी तरल छाया,
लाजारुण ऊषे झाँकी झुरमुट से,
निज नयन ओट तुमने जब मुस्काया,
घुँघरू सी गमक उठी सूनी संध्या,
चंचल पायल जब आँगन में मचली।
तुम गए, गई झर मन की कली-कली॥
हो चले गए जब से तुम मनभावन!
मेरे आँगन में लहराता सावन,
हर समय बरसती बदली सी आँखें,
जुगनू सी इच्छाएँ बुझतीं उन्मन,
बिखरे हैं बूँदों से सपने सारे,
गिरती आशा के नीड़ों पर बिजली।
तुम गए गई झर मन की कली-कली॥