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"कूड़े पर / अंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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14:07, 28 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

अब कूड़े के पास से गुजरते हुए
यूँ ही न निकल जाना
या घृणा से मुँह न फेर लेना
कूड़ पर फेंकी गई गठरियोंं में
कभी-कभी ज़िन्दगी भी होती है बंद
जिसे फेंक दिया जाता है
मौत का निवाला बनने के लिए
और निश्चित तौर पर
वह ज़िन्दगी बेटी की होती है

गौर से देख लेना गठरी को
गठरी कहीं रोती न हो
कहीं हिलती-डुलती न हो
यह देखने के लिए
थोड़ा ठहर भी जाना

जहाँ
बेटियाँ बुहारन बन सकती हैं
वहाँ कचरे पर
एक नजर डाल लेना ज़रूरी है