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"आश्विन / अंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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(1)
आश्विन आया है अभी-अभी
थकान उतारने के लिए नहाया
नदी में
सज-धजकर तैयार हुआ
पगड़ी बाँधी और उसमें खोंस ली
कास की सफेद कलगी
उसकी देह को छूकर
आ रही है ठंडी हवा
(2)
आश्विन की सुबह
रोज नहाती है
आकाश की साँवली झील में
पहन लेती है केसरिया साड़ी
और झाँकने लगती है
पूरब की खिड़की से
उसके भींगे बालों से टपकी बूँदे
अटकी रह जाती हैं
घास की फुनगियों में
(3)
देखोगे आश्विन को हँसते हुए?
तो देखना
हर नीली सुबह
वह न जाने किससे बातें करता है
और खूब हँसता है
हरसिंगार के पेड़ के नीचे
सवेरे उसकी हँसी बिखरी रहती है