भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"होरियसा रँग खेलत आओ / प्रतापकुवँरि बाई" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रतापकुवँरि बाई |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:43, 31 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

होरियसा रँग खेलत आओ.
इला पिंगला मुख मणि नारी ता संग खेल खिलाओ॥
सुरत पिचकारी चलाओ.
काचो रंग जगत को छाँड़ौ साँचो रंग लगाओ.
बाहर भूल कबौं सत् जाओ काया-नगर बसाओ॥
तबै निरभै पद पाओ.
पाँचौ उलट धरे घर भीतर अनहद नाद बाजाओ.
सब बकवाद दूर तज दीजै ज्ञान-गीत नित गाओ॥
पिया के मन तब ही भाओ.
तीनो ताप तीन गुण त्यागो, संसा सोक नसाओ.
कहे प्रतापकुँवरि हित चित सों फेर जनम नहिं पाओ॥
जोत में जोत मिलाओ.