भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सपनों में मौजूद है गीत / प्रभात कुमार सिन्हा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभात सरसिज |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:01, 4 अगस्त 2018 के समय का अवतरण

हमारी हार की निरन्तरता अभी बनी है
ऐसे में जीत के सपनों को तह लगाना ज़रूरी है
सपनों में जीत की अपरम्पार संभावनाएँ मौजूद हैं
बसुन्धरा का बार-बार सजना
हमारे जीवन की पिपासा को जाग्रत रखता है
माता की लाज से ही लिपटा है सौगन्ध
गेहूँ के दानों में जबतक दूध भरता रहेगा
तबतक हम जिन्दा रहेंगे
आँचल की गाँठ में आता रहेगा नवान्न
हमारी मुट्ठियाँ तैश में बंधी रहेंगी
खलिहानों में अलभ्य गीत मुस्काते रहेंगे
लड़ना हमारे सहज भाव हैं
लड़ने की आकांक्षा में दंभ की गंध नहीं है
जबकि विपत्तियाँ वेगमयी बनी हुई हैं
इस समय जीत के सपनों को तह लगाना ज़रूरी है
सपनों में ही हमारी
निर्णायक जीत मौजूद है।