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"लतियाइयेगा कैसे? / प्रभात कुमार सिन्हा" के अवतरणों में अंतर
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मालिक अर्द्ध-सत्य के उपासक हैं
गणित के मुताबिक आधे मिथ्याचारी हैं
उनका सत्यांश अपने गुट के लिये
अत्यन्त कल्याणकारी है
और मिथ्यांश हत्या तक पहुंचता है
मालिक भयभीत रहते हैं
जब भी हत्या होती है वे अनुपस्थित रहते हैं
बड़े हत्याकांड के समय विदेश-भ्रमण पर रहते हैं
आते साथ हत्याकांड को
सामूहिक बलात्कार की चर्चा से ढंक देते हैं
मालिक आये हैं सत्य के बड़े अंश को धकियाते हुए
और अब लतियाए बिना नहीं जायंगे
कवि जी! कान के नीचे तक जुल्फ़ें बढ़ाये रखिये
लेकिन पैर में मालिश भी कीजिये
लतियाइयेगा कैसे?