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"चित्रकार / अशोक कुमार" के अवतरणों में अंतर

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09:16, 15 अगस्त 2018 के समय का अवतरण

जब मैं एक वर्तुल बनाता हूँ
तो उसकी कोई ठोस दीवारें नहीं होतीं
सब कुछ वायवीय होता है
जिसके भीतर तरल उमड़ रहे होते हैं

जब कोई आयत बनाता हूँ
तो उसका मतलब भी यह नहीं होता
कि न जुडें उसके टुकड़े
जब वे पास आ रहे होते हैं

जब मैं खींच रहा होता हूँ आड़ी तिरछी कोई रेखा
तो उन रेखाओं के पार
होता है एक व्यवस्थित सुनहला संसार
और बेचैन होता है
इस पार मेरा चित्रकार।