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"कोई स्वप्न / अशोक कुमार" के अवतरणों में अंतर

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10:22, 15 अगस्त 2018 के समय का अवतरण

मैं आसमान में एक कविता लिख रहा था
और वह आसमान के बारे में नहीं था

मैं आकाश में कविता ज़मीन पर लिख रहा था

जब मैं यह कह रहा था
तब क्या सच में मैं आसमान में था
या ज़मीन से थोड़ा उठा हुआ था

और फिर ज़मीन से थोड़ा ऊपर उठ जाना
आकाश हो जाना था

अक्सर होता है कि ज़मीन लिखवा लेती है
खुद के बारे में
ज़मीन पर रहते हुए

और फिर आसमान में पहुँचा देती है।