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"शाम से ही / अशोक कुमार" के अवतरणों में अंतर
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दिन का हिसाब शाम लेती है
क्या खर्च हुआ
क्या शेष रहा
कितनी तय हुई यात्रा
और कितनी रही बाकी
आकांक्षाएँ कितनी परवान चढीं
कितनी खेत रहीं
दिन की सारी योजनायें
शाम बनाती है
जो छूटे
जो टूटे
काम वे कल होंगे
जो भागे
जो बचे
पल वे कल धरे जायेंगे
भागदौड़ की एक आँधी
फिर कल चलेगी
दिन की शुरुआत
कौन कहता है
सुबह से होती है!