भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घड़ियाँ बन्द क्यों हैं / अशोक कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | घड़ियाँ कलाईयों पर नहीं हैं अब | |
− | + | वे मुट्ठियों में हैं या जेबों में | |
− | + | पर समय गिरेबान पर चढ़ गया है | |
− | + | और रेत रहा है | |
− | + | समय की फिक्र से बच गयी हैं भुजायें | |
− | + | और हथेलियों या जेबों में बची हैं सिर्फ़ बन्द घड़ियाँ ही | |
− | + | समय के फिसलने के बाद | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | घड़ियों ने समय को व्यक्त करने से मना कर दिया है | |
− | + | वे उससे बँध कर नहीं रहना चाहतीं | |
+ | और न ही उसे बाँध कर रखना चाहती हैं काँच के किसी घेरे में | ||
− | + | दीवार अब समय देखे जाने की माकूल जगह नहीं रही | |
− | + | और घड़ियाँ अब वहाँ टाँगे जाने से बगावत कर बैठी हैं | |
− | + | ||
− | और | + | |
− | + | नगर में टावर पुरातत्व के अवशेष भर हैं | |
− | + | और बन्द पड़ी हैं घड़ियाँ।</poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | </poem> | + |
11:20, 15 अगस्त 2018 के समय का अवतरण
घड़ियाँ कलाईयों पर नहीं हैं अब
वे मुट्ठियों में हैं या जेबों में
पर समय गिरेबान पर चढ़ गया है
और रेत रहा है
समय की फिक्र से बच गयी हैं भुजायें
और हथेलियों या जेबों में बची हैं सिर्फ़ बन्द घड़ियाँ ही
समय के फिसलने के बाद
घड़ियों ने समय को व्यक्त करने से मना कर दिया है
वे उससे बँध कर नहीं रहना चाहतीं
और न ही उसे बाँध कर रखना चाहती हैं काँच के किसी घेरे में
दीवार अब समय देखे जाने की माकूल जगह नहीं रही
और घड़ियाँ अब वहाँ टाँगे जाने से बगावत कर बैठी हैं
नगर में टावर पुरातत्व के अवशेष भर हैं
और बन्द पड़ी हैं घड़ियाँ।