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"चक्रव्यूह / अशोक कुमार" के अवतरणों में अंतर

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12:54, 15 अगस्त 2018 के समय का अवतरण

मैंने खुद ही रचा है
अपने लिए एक चक्रव्यूह,
बुना है
अपना लिये ही एक मकडजाल।

मैंने कई हदें पार करने की कोशिश की थी
कई पहाड़, जंगल, नदियाँ, रेगिस्तान
कई बंदिशें, कई सरहदें
जो बाँधी थी खुद के लिए
उन्हें ही तोड़ कर निकल जाना चाहा था
एक अनजान देश, एक अनजाने मुकाम की ओर।

उन चहारदीवारियों को फांदने की कोशिश में
छिलीं थीं मेरी कुहनियाँ और घुटने
और रिसा था खून पसीने के साथ-साथ।

क्या तुम बता सकते हो
जब तुम बुनते हो खुद के लिए बंदिशें
तय करते हो खुद की सरहदें
रचते हो खुद की एक लक्ष्मण रेखा,
तो क्या सचमुच उस सीमा रेखा से
बाहर निकलने के लिए
तुम कभी नहीं छटपटाते।