"रो लो पुरुषों / पल्लवी त्रिवेदी" के अवतरणों में अंतर
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बड़ा कमज़ोर होता है
बुक्का फाड़कर रोता हुआ आदमी
मज़बूत आदमी बड़ी ईर्ष्या रखते हैं इस कमज़ोर आदमी से
सुनो लड़की
किसी पुरुष को बेहद चाहती हो ?
तो एक काम ज़रूर करना
उसे अपने सामने फूट-फूट कर रो सकने की सहजता देना
दुनिया वालो
दो लोगों को कभी मत टोकना
एक दुनिया के सामने दोहरी होकर हंसती हुई स्त्री को
दूसरा बिलख-बिलख कर रोते हुए आदमी को
ये उस सहजता के दुर्लभ दृश्य हैं
जिसका दम घोंट दिया गया है
ओ मेरे पुरुष मित्र
याद है जब जन्म के बाद नहीं रोये थे
तब नर्स ने जबरन रुलाया था यह कहते हुए कि
" रोना बहुत ज़रूरी है इसके जीने के लिए
"बड़े होकर ये बात भूल कैसे गए दोस्त ?
रो लो पुरुषो , जी भर के रो लो
ताकि तुम जान सको कि
छाती पर से पत्थर का हटना क्या होता है
ओ मेरे प्रेम
आखिर में अगर कुछ याद रह जाएगा तो
वह तुम्हारी बाहों में मचलती पेशियों की मछलियाँ नहीं होंगी
वो तुम्हारी आँख में छलछलाया एक कतरा समन्दर होगा
ओ पुरुष
स्त्री जब बिखरे तो उसे फूलों-सा सहेज लेना
ओ स्त्री
पुरूष को टूटकर बिखरने के लिए थोड़ी-सी ज़मीन देना