भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बाइस / प्रबोधिनी / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:16, 2 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

ओ दिल के सौदागर
सस्ती है हाट गाँठ मत खोलो

दिल का सौदा रे! पूछ रहे तुम किससे
बेचा करता जो दो पैसे में, सच कहता हूँ उससे
फूल समझ कर आग कभी मत लेना
यह काला बाजार हृदय मत देना

रात न रोना पड़े इसलिए
सम्हल सम्हल कर चलो, सम्हल कर बोलो
कौन नहीं लूट गया यहाँ जो आया
शाक बणिक कब समझ रत्न को पाया
अरे! रेल की ईजन, पटरी से मत लुढ्काओ
नादान सड़क है, कच्ची मत भरमाओ

फँस जाओगे रोओगे
चिकनी-चुपड़ी बातों में मत भूलो

बदनसीब मानो कहना, तुम मेरी तरह लुटो मत
जीना है तो जियो शान से, मेरे तरह घुटो मत
पारस को पाषाण समझने बाले होते यहाँ जौहरी
वीर वही कहलाते हैं जी रण में देते पीछे फेरी

ओ भोले सौदागर
दिल से नहीं जीभ से बोलो