"सात / आह्वान / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:27, 3 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण
कागा बोल
शब्द अनमोल तुम्हारे
तुम अपना मुँह खोल
होठों पर लाली छाई है मुख पर मृदु मुस्कान
छट पर चढ़ का गादो प्यारे तुम वीरों के गान
माँ के लिए हो गए कितने वीर युवक कुर्बान
बाँके-छैल-छबीला
गाल पर जिसको काला तिल
वीर है या कायर तुम बोल
वही है मेरा प्रिय प्राणेश, हमीं ने भेजा दे संदेश
लौटना नहीं, प्राण चाहे हो जाये शेष
रक्त का टीका दिया हमने पिया के भाल में
और अपनी मूर्ति गूँथी प्रिय गले की माल में
दिल से खुले
हँस-हँस मिले
जा वीर के हर क्षण वहाँ अनमोल
काले-काले पंख तुम्हारे काली-काली चोंच
किसका पिया रक्त तूँ खाया किसकी आँखे नोंच
कौन पातकी लौटा रण से मन में इतना सोच
मेरी प्राण प्रिया रोयेगी, वे कायर मति पोच
मेरे पति का खून
पी पाया क्या तू न
या अभी वीर गति पा न सके हैं
सुख संदेश बोल